प्रेमचंद की रचनाएं आज भी प्रासंगिक – डॉ रामजी मिश्र

प्रयागराज।उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज की विद्रूपताओं को सामने रखा। उन्होंने गरीबी और अभाव को पास से देखा और उसे अपनी रचनाओं के माध्यम से रेखांकित किया। वो सही मायने में आमजन के कथाकार हैं। उक्त विचार महामहोपाध्याय डॉ रामजी मिश्र ने व्यक्त किए। वो प्रेमचंद जयंती के अवसर पर माध्यम संस्थान द्वारा तमन्ना इंस्टीट्यूट में आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद का हम तीन रूप में मूल्यांकन कर सकते हैं पत्रकार, कहानीकार और उपन्यासकार। उन्होंने जहां एक ओर उत्कृष्ट उपन्यासों की रचना की, अनेक मार्मिक कहानियां लिखी तो साथ ही पत्रकारिता में भी नए आयाम गढ़े ।उन्होंने साहित्य की हर विधा में लिखा। इस मायने में प्रेमचंद की रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं। वह पूरे विश्व में पढ़े जाते हैं। वरिष्ठ रंगकर्मी वह फिल्म अभिनेता शिव गुप्ता ने कहा कि प्रेमचंद की भाषा सहज व सरल है जिससे वह समाज में स्थापित है। वो हमें अपने आप से जोड़ लेती है। उनकी रचनाएं अनमोल हैं। प्रेमचंद ने समाज की कुरीतियों, धार्मिक आडंबर और अनेक समसामयिक विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। कार्यक्रम का संचालन व विषय प्रवर्तन करते हुए वरिष्ठ रंग निर्देशक डॉ अशोक कुमार शुक्ला ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियों में विविध रंग मिलते हैं खासकर ग्रामीण परिवेश की कहानियां हमें प्रभावित करती हैं। इनकी कहानियां सही मायने में शोषित वर्गों का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी रचनाओं का हम पर ऋण है जिससे हम समृद्ध हुए हैं। कार्यक्रम का संयोजन वरिष्ठ निर्देशक विनय श्रीवास्तव ने किय। आरंभ में कार्यक्रम की रूपरेखा बताते हुए उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की रचनाएं आम आदमी की व्यथा और उनकी आकांक्षाओं का दस्तावेज हैं जिनमें सामान्य भारतीय जन-जीवन परिलक्षित होता है। प्रेमचंद की रचनाओं में सामाजिक सरोकार, मानवीय मूल्यों और संबंधों का यथार्थ चित्रण मिलता है। संगोष्ठी में सुधीर सिन्हा, अजीत बहादुर, लवकुश भारतीय, अंशु श्रीवास्तव, कृष्णा यादव, रिभू श्रीवास्तव, अक्षय, अजय, विपिन, ओम सहित छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।