भोजन में रोगों से बचाने और रोगों का इलाज करने की क्षमता होती है। इसे समझते हुए, लगभग 400 ईसा पूर्व सर्वज्ञानी हिप्पोक्रेट्स ने अपनी अवधारणा में कहा था, ‘भोजन को अपनी दवा और दवा को अपना भोजन होने दें।’ आधुनिक प्रगति और शोध, इस निष्कर्ष के पर्याप्त सबूत देते हैं कि कार्यशील खाद्य पदार्थों और पोषण-औषधि में; प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को घटाने-बढ़ाने व व्यवस्थित करने तथा संक्रमण से बचाव करने की क्षमता होती है। संतुलित पोषक तत्वों के साथ एक स्वस्थ आहार, प्राकृतिक तौर पर और पर्यावरण के कारण उत्पन्न मुक्त कणों को निष्क्रिय बना सकते हैं। मुक्त कण शरीर के कई हिस्सों में ऑक्सीडेटिव तनाव का कारण बनते हैं, जो रोग की स्थितियों को जन्म देते हैं और आधुनिक दवा इससे हुई क्षति की भरपाई करती है। एक स्वस्थ आहार में एंटीऑक्सिडेंट, मुक्त कणों को निष्क्रिय बनाते हैं और कोशिकाओं की क्षति को रोकते हैं तथा इस प्रकार बीमारी को शुरू होने से पहले ही रोक देते हैं, जिससे दवाओं का आवश्यकता नहीं रह जाती हैं। एक स्वस्थ समाज के निर्माण में भोजन हमेशा एक शक्तिशाली साधन रहा है और रहेगा। विविधतापूर्ण व संतुलित आहार की अनुपलब्धता, कुपोषण की ओर ले जाती है, जिससे मानव स्वास्थ्य और शारीरिक स्थितियों से जुड़े कई विपरीत परिणाम सामने आ सकते हैं, जैसे बौद्धिक अक्षमता, जन्मजात अक्षमता, अंधापन आदि। कुपोषण के परिणाम केवल स्वास्थ्य मानकों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि इससे शारीरिक और मानसिक चुनौतियों के कारण उत्पादकता और अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है। कुपोषण एक पुरानी समस्या है और हमेशा से लोक प्रशासन और जन कल्याण के लिए एक चुनौती रही है, जो भारत जैसे विकासशील देश की आर्थिक समृद्धि को बाधित करती है। बच्चे, महिलाएं और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए कुपोषण एक गंभीर चुनौती है। 136 करोड़ लोगों वाले भारत जैसे देश में, जिनकी आहार प्रणाली में कार्बोहाइड्रेट की प्रमुखता है, प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्राकृतिक रूप से विविधतापूर्ण भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक विशाल कार्य है।ऐसी स्थिति में भोजन में पोषक तत्वों को विज्ञान-आधारित दृष्टिकोण के साथ संतुलित करना आवश्यक हो जाता है। भोजन को पोषक तत्वों से लैस करने की आवश्यकता महसूस होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि भोजन को पोषक तत्वों से लैस करना, लोगों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को रोकने और नियंत्रित करने के लिए अनुशंसित उपाय है। अन्य अनुशंसित उपाय हैं- जैविक रूप से खाद्य उत्पादों में पोषक तत्वों को बढ़ाना और पूरक पोषक तत्व। खाद्य उत्पादों को पोषक तत्वों से लैस करना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सोच-समझकर विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्वों को जोड़ा जाता है, ताकि इसकी पोषण गुणवत्ता को बढ़ाया जा सके। जैविक रूप से खाद्य उत्पादों में पोषक तत्वों को बढ़ाना पादप प्रजनन तकनीक का एक अनुप्रयोग है, जिसमें प्रमुख खाद्यान्नों में सूक्ष्म पोषक तत्वों को बढ़ाया जाता है। भोजन को पोषक तत्वों से लैस करने की प्रक्रिया के विपरीत, जैविक रूप से खाद्य उत्पादों में पोषक तत्वों को बढ़ाना एक दीर्घकालिक रणनीति है, जिसके लिए पर्याप्त अग्रिम निवेश की आवश्यकता होती है। भोजन को पोषक तत्वों से लैस करने की प्रक्रिया के लिए प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष अनुमानित लागत 0.12 डॉलर है, जबकि भारत में चावल में जैविक रूप से पोषक तत्वों को बढ़ाने की लागत 1,600,000 डॉलर प्रति वर्ष (राष्ट्रीय स्तर पर, कुल योग) है। पूरक पोषक तत्व आपूर्ति की प्रक्रिया में अधिक मात्रा के उपभोग होने का जोखिम होता है, जबकि नियंत्रित प्रक्रिया के तहत प्रमुख खाद्यान्नों में पोषक तत्वों को बढ़ाने की प्रक्रिया को पोषण संबंधी सबसे कुशल और किफायती उपाय माना जाता है। यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित देशों में, खाद्य उत्पादों में पोषक तत्वों को बढ़ाने के कार्यक्रमों ने गॉइटर, क्रेटिनिज्म, पेलाग्रा, रिकेट्स और ज़ेरोफथाल्मिया जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से होने वाले रोगों को सफलतापूर्वक समाप्त कर दिया है, जिन्हें बच्चों में रुग्णता और मृत्यु दर के उच्च स्तर के लिए जिम्मेदार माना जाता है।भारत की लगभग 65 प्रतिशत आबादी अपने मुख्य भोजन के रूप में चावल का उपभोग करती है। भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, और चावल के प्रसंस्करण का काम करने वाली मिलें चावल के प्रसंस्करण के दौरान उसकी कुल मात्रा का लगभग 10 से 12 प्रतिशत हिस्सा टूटे चावल के रूप में सह–उत्पाद के तौर पर निकालती हैं। चावल के सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया इन टूटे हुए चावल के दानों का उपयोग एक वाहक के रूप में बिना किसी आहार एवं व्यवहार संबंधी परिवर्तन के बड़े पैमाने पर लोगों, खासकर कम आय वाली आबादी, तक आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों को पहुंचाने के लिए करती है। टूटे हुए चावल के दाने को पीसकर आटा बनाया जाता है, उस आटे को विटामिन-खनिज तत्वों के मिश्रण (प्रीमिक्स) के साथ मिलाया जाता है और फिर उस मिश्रण को चावल के आकार की गुठली में बदला जाता है जिसे आमतौर पर ‘फोर्टिफाइड राइस कर्नेल (एफआरके)’ के रूप में जाना जाता है। इस एफआरके को एफएसएसएआई द्वारा सूक्ष्म पोषक तत्व की निर्धारित सांद्रता को हासिल करने के उद्देश्य से 1 : 100 के अनुपात में सामान्य चावल के साथ मिश्रित किया जाता है। आईआईटी खड़गपुर द्वारा विकसित स्वदेशी प्रक्रिया ने देशी चावल की तुलना में एफआरके के रंग, आकार, घनत्व, कार्यात्मक और खाना पकाने से संबंधित गुणों में अंतर से जुड़ी पहले से मौजूद समस्याओं को हल कर दिया है। उत्सारण (एक्सट्रूज़न) की प्रक्रिया सूक्ष्म पोषक तत्वों को बेहतर तरीके से बरकरार रखती और उसे स्थिरता प्रदान करती है। यह प्रक्रिया सुदृढ़ीकरण कार्यक्रम के बेहतर कार्यान्वयन के लिए एक किफायती विकल्प भी प्रदान करती है।इस कार्यक्रम के कारगर कार्यान्वयन के लिए, एफआरके की उत्पादन प्रक्रिया एवं सामान्य चावल के साथ उसके सम्मिश्रण की प्रक्रिया को निरंतर निगरानी, गुणवत्ता संबंधी आश्वासन एवं नियंत्रण और उच्च अनुपालन सुनिश्चित करने की दृष्टि से किए जाने वाले सुधारात्मक उपायों के तहत संचालित किया जाना चाहिए। इन सूक्ष्म पोषक तत्वों के खुराक की अधिक या कम होने की स्थिति से बचने के लिए जीएमपी, जीएचपी से संबंधित उपयुक्त उपाय एवं मानक होने चाहिए। किसी भी अन्य खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की तरह, इस कार्यक्रम की निरंतरता बनाए रखने के लिए कड़े मानकों एवं विनियमों और इसकी प्रभावशीलता पर लगातार निगरानी की जरूरत है।विषाक्तता की स्थिति से बचाव की दृष्टि से सूक्ष्म पोषक तत्वों के अतिरिक्त सेवन के विरुद्ध सूक्ष्म पोषक तत्वों के उच्चतम स्तर के मानक का सुझाव दिया गया है। ऊपरी सीमा से थोड़ी अधिक मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्वों के उपभोग से प्रतिकूल प्रभाव होने का खतरा कम देखा गया है। यहां यह समझना जरूरी है कि अनुशंसित सीमा से अधिक मात्रा में सेवन से जीवनरक्षक दवाएं भी घातक साबित हो सकती हैं। इसलिए, सुदृढ़ीकरण के इस कार्यक्रम को नियंत्रित करने के लिए इससे जुड़ी उचित सीमाओं और सुधारात्मक कार्रवाइयों को लागू करना अनिवार्य है। 1940 के दशक से, यूनाइटेड किंगडम ने लौह तत्व तथा अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से गेहूं के आटे को लैस किया है। तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों ने गेहूं के आटे (एफएफआई) में पोषक तत्वों को बढ़ाने के कार्य को अनिवार्य कर दिया है। कनाडा सरकार ने पोषक तत्वों को बढ़ाने के अनिवार्य कदम का इस्तेमाल गलगण्ड (गोइटर) और सूखा रोग (रिकेट्स) जैसी समस्याओं को समाप्त करने के लिए किया है। पिछले अनुभवों को देखते हुए, पोषण की दृष्टि से विशिष्ट एवं संवेदनशील प्रयासों के जरिए बड़े पैमाने पर खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों को बढ़ाकर सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की समस्या से बचा जा सकता है और उसे नियंत्रित किया जा सकता है।निष्कर्ष के रूप में, यह कहा जा सकता है कि कुपोषण के प्रबंधन की दृष्टि से खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों को बढ़ावा देना आर्थिक रूप से व्यावहारिक और तकनीकी रूप से एक ठोस तरीका है। भारत में चावल एक मुख्य आहार है और सभी सामाजिक-आर्थिक वर्गों के लोग इसका सेवन करते हैं। देश में लौह तत्वों की कमी से होने वाले एनीमिया (आईडीए) की समस्या को दूर करने के लिए चावल को लौह तत्व, फोलिक एसिड और विटामिन बी 12 से लैस करना एक नया और टिकाऊ तरीका है। भारत सरकार की ओर से चावल में पोषक तत्वों को बढ़ाना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से उस चावल को जनता को आपूर्ति की दिशा में की गई पहल बेहद सराहनीय है।
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