चित्रकूट। भारत में कृषि के लिहाज और स्वास्थ्य के हिसाब से मोटे अनाज सदैव से ही उपयोगी रहे हैं। मोटे अनाज को फिर से चलन में लाने के लिए दीनदयाल शोध संस्थान कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से किसानों में जन जागरूकता के लिए विशेष अभियान चला रहा है। डीआरआई के संगठन सचिव अभय महाजन एवं कोषाध्यक्ष वसंत पंडित एक बार फिर से मोटे अनाजों के प्रति रुझान बढ़ाने के लिए रुचि दिखा रहे हैं। जनपद के ग्राम बंदरकोल में विभिन्न किस्मों के मोटे अनाजों की फसलों का प्रदर्शन तैयार कराया गया है। कम समय, कम खर्चा, कम पानी एवं पोषक तत्वों से परिपूर्ण यह फसलें गरीब किसानों के लिए प्रेरणा का केंद्र बनीं है।मोटे अनाज में गिना जाने वाला कोदो कुटकी आज उपेक्षित अनाज में शामिल हो गया है। कम लागत में अधिक उपज पाने की लालसा में भले ही किसान धान, गेहूं व अन्य अनाज की खेती करने में पसंद दिखा रहे, लेकिन कोदो की पौष्टिकता के बारे में जब जानकारी मिलेगी तो स्वतः इसके प्रति झुकाव होगा। इसके दाने काफी लाभदायक है। पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन की उपलब्धता वाले इस अन्न में पौष्टिकता की खान होती है। यानि यह सुपोषण के लिए सबसे बढिया अन्न है। ग्राम बंदरकोल में दीनदयाल शोध संस्थान की वैश्विक सुविधा पर्यावरण परियोजना का काम देख रहे कृषि विशेषज्ञ सत्यम चैरिहा ने बताया कि ये फसलें गरीब एवं आदिवासी क्षेत्रों में उस समय लगाई जाने वाली खाद्यान फसलें हैं। जिस समय पर उनके पास किसी प्रकार अनाज खाने को उपलब्ध नहीं हो पाता है। ये फसलें सितम्बर में पककर तैयार हो जाती है जबकि अन्य खाद्यान फसलें इस समय पर नही पक पाती और बाजार में खाद्यान का मूल्य बढ़ जाने से गरीब किसान उन्हें नही खरीद पाते हैं। अतः इस समय 60-80 दिनों में पकने वाली कोदो-कुटकी, सावां,एवं कंगनी जैसी फसलें महत्वपूर्ण खाद्यानों के रूप में प्राप्त होती है। यह रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के प्रभावों से भी मुक्त है। कोदो, कुटकी उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए रामबाण है। इसमें चावल के मुकाबले कैल्शियम भी 12 गुना अधिक होता है। शरीर में आयरन की कमी को भी यह पूरा करता है। इसके उपयोग से कई पौष्टिक तत्वों की पूर्ति होती है। कोदो की खेती में खर्च भी ज्यादा नहीं है। कम बारिश में भी इसकी पैदावार में कमी नहीं आएगी।
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