वाशिंगटन । संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि चीन अफगानिस्तान में अपने विस्तार की संभावनाओं की वजह से तालिबान के साथ अपनी निकटता बढ़ा रहा है। यही वजह है कि उसने अफगानिस्तान में तालिबान की ताजपोशी के पहले ही उसे मान्यता दे दी है। तालिबान को चीन से धन मिलने के बारे में पूछे जाने पर, बाइडेन ने कहा तालिबान चीन, पाकिस्तान और रूस के विपरीत नहीं है। व्हाइट हाउस में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में बाइडेन ने संवाददाताओं से कहा चीन को तालिबान के साथ एक वास्तविक समस्या है। यही वजह है कि वे तालिबान के साथ कुछ व्यवस्था करने की कोशिश करने जा रहे हैं। मुझे इस बात का यकीन है। जैसा पाकिस्तान करता है, वैसा ही रूस और ईरान करता है। वे सभी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें अब क्या करना है। अमेरिकी राष्ट्रपति का बयान उस दिन आया जब तालिबान ने हफ्तों के विचार-विमर्श के बाद अफगानिस्तान में एक नई अंतरिम सरकार की घोषणा की है। इस कैबिनेट में एक भी महिला को जगह नहीं दी गई है। एफबीआई की ‘मोस्ट वांटेड’ लिस्ट में शामिल व्यक्ति को सरकार में अहम जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसके अलावा अनेक लोगों को अच्छा खासा क्रिमिनल रिकार्ड रहा है। मेरिका नए मंत्रिमंडल के गठन को लेकर काफी चिंतित है। उसे यह पता है कि चीन नए तालिबान शासन को अपने सहयोगियों में से एक के रूप में पेश करने की तैयारी कर रहा है।काबुल के पतन से पहले ही चीन ने तालिबान को युद्धग्रस्त राष्ट्र के वैध शासक के रूप में मान्यता देने की तैयारी कर ली थी। इसके अलावा, अशरफ गनी शासन के गिरने से कुछ हफ्ते पहले, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने समूह के साथ ‘मैत्रीपूर्ण संबंध’ विकसित करने के लिए मुल्ला अब्दुल गनी बरादर से मुलाकात की थी। वांग यी ने 29 अगस्त को अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन के साथ भी फोन पर बात की। अमेरिका ने अपने सात सहयोगियों के समूह के साथ, तालिबान के प्रति अपनी प्रतिक्रिया के समन्वय के लिए सहमति व्यक्त की है। व्हाइट हाउस ने कहा बाइडेन प्रशासन के पास न्यूयॉर्क फेडरल रिजर्व द्वारा रखे गए अफगान के सोने, निवेश और विदेशी मुद्रा भंडार को जारी करने की कोई मौजूदा योजना नहीं है। अमेरिका का कहना है कि तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता और आर्थिक सहायता मानव अधिकारों, कानून के शासन और मीडिया की रक्षा के लिए कार्रवाई पर निर्भर करेगा। हालांकि, राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि अगर चीन, रूस या कोई अन्य देश तालिबान को धन मुहैया कराना जारी रखेगा तो तालिबान को इसकी अधिक जरूरत नहीं पड़ेगी।
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