नयी दिल्ली | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि सामूहिक प्रयास हमारी परम्परा का हिस्सा रहा है और पिछले छह -सात वर्षों में जन-भागीदारी की ताकत से भारत में ऐसे-ऐसे कार्य हुए हैं जिनकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था और अब जन भागीदारी राष्ट्रीय चरित्र का रूप ले रहा है।
श्री मोदी ने शिक्षक पर्व समारोह के दौरान शिक्षकों, छात्रों और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों को संबोधित करते हुए मंगलवार को कहा कि प्राचीनकाल से भारत में समाज की सामूहिक शक्ति पर भरोसा किया गया है। यह अरसे तक हमारी सामाजिक परंपरा का हिस्सा रहा है। जब समाज मिलकर कुछ करता है तो इच्छित परिणाम अवश्य मिलते हैं। आपने यह देखा होगा, और देखा है कि बीते कुछ वर्षों में जन-भागीदारी अब फिर भारत का राष्ट्रीय चरित्र बनता जा रहा है। पिछले छह-सात वर्षों में जन-भागीदारी की ताकत से भारत में ऐसे-ऐसे कार्य हुए हैं, जिनकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। चाहे स्वच्छता आंदोलन हो, हर गरीब के घर में गैस का कनेक्शन पहुंचाना हो, गरीबों को डिजिटल लेन-देन सिखाना हो, हर क्षेत्र में भारत की प्रगति ने, जन-भागीदारी से ऊर्जा पाई है।उन्होंने कहा कि अब ‘विद्यांजलि’ भी इसी कड़ी में एक सुनहरा अध्याय बनने जा रही है। ‘विद्यांजलि’ देश के हर नागरिक के लिए आह्वान है कि वह इसमें भागीदार बने, देश के भविष्य को गढ़ने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाए। दो कदम आगे आएं। आप एक इंजीनियर हो सकते हैं, एक डॉक्टर हो सकते हैं, एक शोधरत वैज्ञानिक हो सकते हैं, आप कहीं आईएएस अधिकारी बनकर कहीं कलेक्टर के रूप में कहीं काम करते हों। फिर भी आप किसी स्कूल में जाकर बच्चों को कितना कुछ सिखा सकते हैं। आपके जरिए उन बच्चों को जो सीखने को मिलेगा, उससे उनके सपनों को नई दिशा मिल सकती है। आप और हम ऐसे कितने ही लोगों के बारे में जानते हैं, जो ऐसा कर भी रहे हैं। कोई बैंक का सेवानिवृत्त मैनेजर है लेकिन उत्तराखंड में दूर-दराज पहाड़ी क्षेत्रों के स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहा है। हाल ही में संपन्न हुए टोक्यो ओलम्पिक और पैरा-ओलम्पिक में हमारे खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया है। हमारे युवा इनसे कितना प्रेरित हुए हैं। मैंने अपने खिलाड़ियों से अनुरोध किया है कि आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर हर खिलाड़ी कम से कम 75 स्कूलों में जाये। मुझे खुशी है कि इन खिलाड़ियों ने मेरी बात को स्वीकार किया है।श्री माेदी ने कहा कि आज एक और महत्वपूर्ण शुरुआत स्कूल गुणवत्ता आकलन एवं मान्यता ढांचा (एसक्यूएएएफ) के माध्यम से भी हो रही है। अभी तक देश में हमारे स्कूलों के लिए शिक्षा के लिए कोई एक समान वैज्ञानिक फ़्रेमवर्क ही नहीं था। कॉमन फ्रेमवर्क के बिना शिक्षा के सभी पहलुओं के लिए मानक बनना मुश्किल होता था। इससे देश के अलग अलग हिस्सों में, अलग अलग स्कूलों में छात्रों को शिक्षा में असमानता का शिकार होना पड़ता है। लेकिन एसक्यूएएएफ अब इस खाई को पाटने का काम करेगा। इसकी सबसे बड़ी खूबी है कि इस फ्रेमवर्क में अपनी जरूरत के हिसाब से बदलाव करने की सुविधा भी राज्यों के पास होगी। स्कूल भी इसके आधार पर अपना मूल्यांकन खुद ही कर सकेंगे। इसके आधार पर स्कूलों को एक बदलाव के लिए प्रोत्साहित भी किया जा सकेगा।