काबुल । अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के दो हफ्ते से ज्यादा का वक्त गुजर जाने के बाद शुक्रवार को सरकार का गठन होना था, लेकिन इसे शनिवार तक के लिए टाल दिया गया है। तालिबान के प्रवक्ता ने बताया कि सरकार गठन का ऐलान शनिवार को किया जाएगा। अफगानिस्तान में तालिबान की शूरा काउंसिल देश पर शासन करेगी। जानकारी के मुताबिक शुक्रवार को सरकार के निर्माण को लेकर निर्णय ले लिया गया है। शुरा काउंसिल में तालिबान के टॉप लीडर्स, अन्य क्षेत्रीय समूहों के लोग शामिल किए जाएंगे। सरकार में कोई भी महिला सदस्य नहीं होगी। इस काउंसिल के सदस्य ही सरकार का प्रतिनिधित्व करेंगे। मुल्ला अब्दुल गनी बरादर राजनीतिक दफ्तर के हेड हो सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि नई सरकार में 80 फीसदी सदस्य तालिबान की दोहा टीम से होंगे।साल 2010 से ही तालिबान के सीनियर लीडर्स दोहा में रह रहे हैं। मकसद ये था कि एक दफ्तर बने जिसके जरिए तालिबान, अफगानिस्तान सरकार, अमेरिका और अन्य देशों के बीच स्थाई समाधान तलाशा जाए। तालिबान का दफ्तर शुरू होने के बाद शांति वार्ता 2013 में बंद हो गई थी क्योंकि अफगानिस्तान सरकार ने विरोध किया था। सरकार का कहना था कि तालिबान के दफ्तर को ऐसा दिखाया जा रहा है जैसे ये कोई निर्वासित सरकार है।शेर अब्बास स्तानिकजाई बन सकते हैं विदेश मंत्री नई सरकार में विदेश मंत्री का पद शेर अब्बास स्तानिकजाई को दिया जा सकता है। स्तानिकजाई के चुनाव के पीछे उनकी अंतरराष्ट्रीय सर्किल में पहचान है। सूत्रों का कहना है कि हामिद करजई और अब्दुल्ला अब्दुल्ला को शुरा काउंसिल में तो जगह नहीं मिलेगी लेकिन ये लोग महत्वपूर्ण सलाहकार की भूमिका में हो सकते हैं।
हक्कानी नेटवर्क को भी मिलेगी भागीदारी हक्कानी नेटवर्क को सरकार में 50 फीसदी की भागीदारी मिल सकती है। वारलॉर्ड से नेता बनने की फिराक में लगे गुलुबुद्दीन हेकमतयार को भी सरकार का हिस्सा बनाया जा सकता है। लेकिन उन्हें दूसरी या तीसरी श्रेणी में जगह मिलेगी। हालांकि तालिबान की ये सरकार अभी ‘अंतरिमÓ होगी क्योंकि अगले साल तक नया संविधान आ सकता है। सूत्रों का कहना है कि इससे संबंधित सभी घोषणाएं एक या दो दिन में कर दी जाएंगी।पंजशीर में विरोध जारी, चल रही है खूनी जंग बता दें कि 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा हासिल करने वाले तालिबान को अब भी पंजशीर से जबरदस्त प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। पंजशीर में सालेह और मसूद की अगुवाई में विद्रोहियों और तालिबान के बीच खूनी जंग जारी है। अफगानिस्तान की पूर्ववर्ती सरकार के हजारों सैनिक भागकर पंजशीर पहुंच चुके हैं जो तालिबान से लोहा लेने के लिए तैयार हैं। दोनों पक्षों के बीच बातचीत के सारे रास्ते बंद होते दिख रहे हैं। तालिबान के लिए अब भी सबसे बड़ा चैलेंज वैश्विक देशों से मान्यता का है। जब तक पश्चिमी देशों से मान्यता नहीं मिलती तब तक अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा तालिबान को फंड मिलना मुश्किल है। मानवाधिकार समूहों ने अर्थव्यवस्था और अन्य मुद्दों को लेकर चेतावनी भी दी है।