देवरिया । जिला कृषि रक्षा अधिकारी रतन शंकर ओझा ने बताया है कि विगत एक दो वर्षों से जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में धान की फसल में हल्दिया रोग का प्रकोप दिखाई पड़ रहा है। इस रोग में धान की बालियों के कुछ दाने प्रभावित होते हैं जो फफुंदी द्वारा जनित से भर जाते हैं जो पीले नारंगी रंग के बीजाणुओं(हल्दी के रंग) से भरी होती है तथा आवरण ढंके होते है, बाद में आवरण(झिल्ली) फट जाती है तथा पीले नारंगी बीजाणु बाहर निकल कर हवा के माध्यम से वातावरण में फैल जाते हैं। शीघ्र ही पूरी फसल इस रोग की चपेट में आ जाती है इसके कारण दानों में पाउडर (स्पोर डस्ट) भर जाता है तथा दानो का वजन प्रभावित तथा गुणवत्ता कम हो जाती है, बीजों का अनुकरण भी प्रभावित होता है। फाल्स स्मट रोग पैनिकल निकलने के बाद ही परिलक्षित होता है अर्थात धान की पुष्पावस्थरा में ही संक्रमण प्रारम्भ होता हैै जब पुष्प में अण्डाशय नष्ट हो जाता है तथा फफूँदी से भर जाता है। इसके पश्चात संक्रमण की दूसरी अवस्था आती है जब पुष्पगुच्छ(स्पाईकलेट) विकसित हो जाते है। अर्थात रोग का संक्रमण तथा फैलाव धान की प्रजनन पकने की अवस्था में ही दिखाई देता है। इस रोग के फैलाव में अनुकूल वातावरणीय परिस्थितियां सहायक होती है जैसे अत्यधिक वर्षा पात तथा अत्यधिक सापेक्षिक आद्रता (90 प्रतिशत) जो नमी उत्पन्न कर रोग के बीजाणुओं का उत्पादन बढाकर रोग के द्वितीयक प्रसार में मदद करता है। वातावरण का तापमान 25 से 35 डिग्री सेल्सियस, मृदा में अत्यधिक नाइट्रोजन तत्व की उपस्थिति जो अत्यधिक यूरिया/नत्रजन उर्वरक के प्रयोग से होता है, भी रोग के प्रसार में सहायक होता है। इसके अलावे तेज हवायें भी बीजाणुओं को एक पौधे से दूसरे पौधो तक पहुंचाती है। फंफूदी के स्क्लेरोटिया/ क्लैमाइडोस्पोर्स भी मिट्टी आदि में काफी समय तक उपस्थित रहते हैं जो अनुकूल वातावरण मिलने पर संक्रमण उत्पन्न करते है। बचाव के उपाय के संबंध में उन्होने बताया है कि खेत में लगातार पानी भरने के स्थान पर ऑल्टरनेट वेट-ड्राई प्रक्रिया अपनायी जानी चाहिए क्योंकि नम वातावरण में रंग का प्रसार अत्यधिक होता है। धान की अप्रमाणिक तथा हाईब्रिड प्रजातियों में यह रोग अधिक लगता है क्योंकि ये प्रजातियां उत्पादक तो अधिक देती है किन्तु इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है अर्थात ये रोगोें के प्रति अधिक सुग्राह्य होती है। रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू0पी0 से बीजशोधन, नाईट्रोजन(यूरिया) का संतुलित प्रयोग प्रभावित पौधों, स्ट्रा, स्टबल आदि को खेत से नष्ट करना, नियत समय पर ही बुलाई रोपाई करना इत्यादि द्वारा ही फाल्स स्मट रोग के संक्रमण से फसल को बचाया जा है।रोग सामान्यतया धान की पैनिकल आस्था में दिखाई देता है। धान की पूष्पावस्था के पूर्व अवस्था में ही फसल पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू०पी० या कापर आक्सीक्लोराईड 50 डब्लू०पी० या हेक्साकोनाजोल 5 प्रति०ई०सी० का छिडकाव करने से रोग की संभावना कम हो जाती है। यदि धान की फसल में हल्दिया रोग लगने की सम्भावना प्रतीत हो अथवा रोग के लक्षण दिखाई दें तो धान की बूट लीफ तथा मिल्को अवस्था में कापर आक्सीक्लोराईड 50डब्लू0पी0 (2.5ग्राम/ली०) या 25 ई०सी० (1 मिली०/ जी०) या टेबूकोनाजेल 18.3+ एजाक्सीस्ट्रोबिन 11 प्रति० एस. सी० का छिडकाव रोग की रोकथाम कर नियंत्रण करता है। यदि रोग लग भी जाता है तो इन्ही रसायनों का प्रयोग करें। इस प्रकार किसान भाई उपरोक्तानुसार संस्तुत क्रियाओं को अपनाकर तथा उचित समय पर रसायन का छिड़काव कर फसल की सुरक्षा कर सकते हैं।
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