काबुल । अफगानिस्तान में तालिबान का शासन होते ही लोगों को उसके अत्याचारों का डर सताने लगा है। यही वजह है कि बहुत बड़ी संख्या में लोग अफगानिस्तान से निकल कर दूसरे देशों में जाने के लिए मारा-मारी कर रहे हैं। आशंका है कि तालिबान के शासन में बहुत सारी कुप्रथाएं शुरू हो जाएंगीं। इस देश में सदियों से एक कुप्रथा चली आ रही है, जिसे वहां की लोकतांत्रिक सरकार भी दूर नहीं कर पाई। इस कुप्रथा को बच्चाबाजी के नाम से जाना जाता है। सिर्फ अफगानिस्तान ही नहीं पाकिस्तान के कुछ इलाकों में भी बच्चाबाजी का चलन है। असल में बच्चा बाजी यौन गुलामी और बाल वेश्यावृत्ति से जुड़ी है। एक तरफ जहां अफगानिस्तान में समलैंगिकता को गैर-इस्लामिक और अनैतिक माना जाता है वहीं देश में यह कुप्रथा आम हो गई है। यह एक ऐसी कुप्रथा है, जिसमें अमीर और ताकतवर लोगों द्वारा नाबालिग लड़कों से पार्टियों में डांस करवाया जाता है। इतना ही नहीं उन्हें लड़कियों के कपड़े पहनाए जाते हैं और लड़कियों की तरह मेकअप भी करवाया जाता है। इस दौरान छोटे लड़कों के साथ पुरुषों द्वारा यौन शोषण भी किया जाता है। बच्चाबाजी के लिए अक्सर उन लड़कों का चयन किया जाता है, जो गरीब और कमजोर वर्ग से आते हैं। कुछ लड़के तो एक बेहतर जीवन की तलाश में इस तरफ आकर्षित हो जाते हैं। इस शौक की ओट में अपराध भी पनपने लगते हैं। कई बार बच्चों को किडनैप करके बेच दिया जाता है। बच्चे अत्याचार का शिकार होते हैं और फिर इस घिनौने दलदल में फंसते चले जाते हैं। अफगानिस्तान में बच्चाबाजी को अवैध माना जाता है, लेकिन इसमें रसूखदार और सशस्त्र पुरुषों की रुचि होने की वजह से कभी कानून पूरी तरह से लागू नहीं किए जा सके हैं। यही कारण है कि इस प्रथा पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जा सकी है। अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना भी जानबूझकर बच्चाबाजी को नजरअंदाज करती रही। इस मुद्दे पर अमेरिकी सेना हमेशा ही यह तर्क देती रही है कि ऐसे शोषण को देखना अफगान सरकार की जिम्मेदारी है। तालिबान की बात करें तो उसने 1996 से 2001 के अपने पहले शासनकाल में बच्चाबाजी के लिए मौत की सजा रखी थी। हालांकि, यह सजा ज्यादातर मामलों में पीड़ित लड़कों को ही मिली और शक्तिशाली अपराधी बच निकलते थे। अब अफगानिस्तान में एक बार फिर तालिबान सत्ता में लौट आया है। ऐसे में देखना यह है कि आतंकी संगठन इस बार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाता है।
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