मुहर्रम की दसवीं पर गूंजी या अली या हुसैन की सदाएं, करबला में दफनाए फूल

प्रयागराज। मुहर्रम की दसवीं यानी यौमे आशूरा पर शुक्रवार को फूल करबला में दफनाए गए। या अली या हुसैन की सदाएं गूंजीं, अकीमतमंदों की आंखें नम रहीं और सभी मुस्लिम बाहुल्य इलाके गमजदा रहे। अलम, मेहंदी, ताजिया, जुलजनाह, ताबूत और इमामबाड़ों के फूल करबला ले जाकर दफनाए गए। कोविड नियमों की बंदिशों के चलते इस बार ताजिया नहीं उठाए गए। ताजियों के मुख्य निकास स्थल पर पुलिस ने बैरीकेडिंग भी की थी।मुहर्रम की दसवीं पर शिया और सुन्नी, दोनों ही समुदाय के लोगों ने करबला का मंजर याद किया। बड़ा ताजिया, बुड्ढा ताजिया और मासूम असगर अली के झूले से सड़कें मुहर्रम की दसवीं पर जहां भरी रहती थीं वहीं शुक्रवार को यातायात सामान्य रहा। शुक्रवार सुबह फजिर की नमाज के बाद बड़ा ताजिया कमेटी के लोग गाडिय़ों से फूल लेकर करबला पहुंचे। फूल दफनाने से पहले अकीदतमंदों ने फातेहा पढ़ी। कमेटी के अध्यक्ष रेहान खान, सचिव इमरान खान, वजीर खान, आमिर, सुहैल आदि ने खिराजे अकीदत पेश की। झूले के फूल लेकर अध्यक्ष गुलाम मोहम्मद और संयोजक गुलाम नबी करबला पहुंचे। सभी इमामबाड़ों, मेहंदी और अलम पर चढ़े फूल करबला में दफनाए गए।इमामबाड़ा नाजिर हुसैन बख्शी बाजार की तुरबत नहीं निकली। इमामबाड़े में शहादत का बयान हुआ। अंजुमन गुन्चा ए कासिमया के नौहाख्वान शादाब जमन, अस्करी, अब्बास, शबीह अब्बास ने करबला में सोए माहापारों को अलविदा की सदा बुलंद की। रानीमंडी में इमामबाड़ा नकी बेग से स्व. यूसुफ हुसैन दुलदुल नहीं निकला। चक स्थित जामा मस्जिद, बख्शी बाजार स्थित काजी जी की मस्जिद में आशूरे का विशेष आमाल कराया गया। दरियाबाद के इमामबाड़ा, सलवात अली खां, इमामबाड़ा अरब अली खां, इमामबाड़ा मोजिजनूमा फूलों को करबला ले जाया गया।