बेंगलुरू। सोमवार को सीएम बीएस येदियुरप्पा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन उनके इस्तीफे का मतलब यह नहीं है कि वह कर्नाटक की राजनीति से अलग हो गए। येदियुरप्पा की राजनीतीक पारी अभी लंबी चलेगी। उन्होंने खुद इस बात के संकेत दे दिए हैं। इस्तीफा देने के बाद उन्होंने कहा कि वह सीएम पद छोड़ रहे हैं, लेकिन वह पॉलिटिक्स में एक्टिव रहेंगे। सरकार में अब उनकी जगह कोई भी हो लेकिन वह पार्टी को आगे बढ़ाने में मदद करते रहेंगे। बहरहाल, चार बार मुख्यमंत्री बनने वाले येदियुरप्पा के लिए सबसे दुखद बात यह रहेगी कि वह कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।कर्नाटक में पार्टी को खड़ा करने में 78 वर्षीय लिंगायत नेता का बहुत बड़ा हाथ है। दो दशकों से ज्यादा समय की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने राजनीति में मजबूत पकड़ बनाई हैं और शायद यही कारण हैं कि दक्षिण भारत में लिंगायत नेता के रूप में उनसे बड़ा कोई और चेहरा किसी भी पार्टी के पास नहीं है। सरकारी लिपिक से हार्डवेयर स्टोर के मालिक और चार बार के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने राजनीति की कठिन डगर को नापा है। दो वर्ष पहले कानूनी लड़ाई और हफ्तों चले राजनीतिक ड्रामे के बाद वह सत्ता में आए थे और वर्तमान कार्यकाल समाप्त होने के दो वर्ष के पहले ही उन्हें पद छोड़ना पड़ा है। येदियुरप्पा के इस्तीफे के कारणों पर नजर डालें तो पहली दृष्टि में यह दिखता है कि उन्हें अपनी उम्र की वजह से सीएम पद को छोड़ना पड़ा। ऐसा एसलिए क्योंकि भाजपा में एक अलिखित नियम है कि 75 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को चुनाव की राजनीति से अलग कर दिया जाता है। बीएस येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद अब 2023 में होने वाले चुनाव के लिए नए चेहरे को चुनाव तक जनता के बीच पहुंचने और अपनी पहचान बनाने का भी पर्याप्त समय मिल जाएगा। येदियुरप्पा नवंबर 2007 में पहले कार्यकाल में सात दिनों तक मुख्यमंत्री रहे, मई 2008 से तीन वर्ष दो महीने के लिए मुख्यमंत्री बने, मई 2018 में तीन दिनों के लिए वह मुख्यमंत्री बने और फिर 26 जुलाई 2019 से दो वर्षों तक मुख्यमंत्री का उनका चौथा कार्यकाल रहा। आरएसएस के स्वयंसेवक रहे बूकनकेरे सिद्धलिंगप्पा येदियुरप्पा का जन्म 27 फरवरी 1943 को मांड्या जिले के केआर पेट तालुका के बूकनकेरे में हुआ था। अपने अनुयायियों में राजा हुली के नाम से विख्यात येदियुरप्पा महज 15 वर्ष की उम्र में आरएसएस से जुड़ गए और जनसंघ के साथ शिवमोगा जिले में गृह नगर शिकारीपुरा से राजनीतिक पारी की शुरुआत की। वह 1970 के दशक की शुरुआत में जनसंघ के, शिकारीपुरा तालुका के प्रमुख बने। येदियुरप्पा ने शिकारीपुरा में पुरसभा अध्यक्ष के तौर पर अपनी चुनावी राजनीति की शुरुआत की, 1983 में ही शिकारीपुरा से वह विधानसभा में पहली बार चुने गए और फिर वहां से आठ बार विधायक बने। कर्नाटक में भाजपा के विकास का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। वह पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष रहे, विधानसभा में विपक्ष के नेता बने, विधान परिषद् के सदस्य बने और फिर संसद के लिए भी चुने गए। कला में स्नातक की डिग्री हासिल करने वाले येदियुरप्पा आपातकाल के दौरान जेल गए, समाज कल्याण विकास विभाग में लिपिक के पद पर काम किया, शिकारीपुरा की चावल मिल में भी लिपिक रहे और फिर शिवमोगा में उन्होंने अपनी हार्डवेयर की दुकान खोल ली। उनकी शादी मैत्रादेवी से पांच मार्च 1967 को हुई जो उस चावल मिल मालिक की बेटी थीं जहां येदियुरप्पा काम करते थे। येदियुरप्पा के दो बेटे और तीन बेटियां हैं। उनके बड़े बेटे बी।वाई। राघवेंद्र शिवमोगा लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं।
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