लंदन। दुनिया के तमाम देश कोरोना वायरस से बचाव के लिए वैक्सीनेशन पर जोर दे रहे हैं। कुछ देशों में कोरोना की पहली और दूसरी डोज के लिए अलग-अलग वैक्सीन के ट्रायल भी चल रहे हैं। इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्युएचओ) ने इसे लेकर चेतावनी दी है। डब्ल्युएचओ की प्रमुख वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने कोरोना की वैक्सीन की मिक्सिंग एंड मैचिंग को बेहद खतरनाक ट्रेंड बताया है। सौम्या स्वामीनाथन ने ऑनलाइन ब्रीफिंग में कहा, यह थोड़ा खतरनाक ट्रेंड है। मिक्स एंड मैच जोन की बात करें, तो हम डाटा फ्री और बिना सबूत वाले जोन में हैं। अगर लोग खुद ही ये फैसला करने लगेंगे कि उन्हें कब और कैसे दूसरी, तीसरी या चौथी डोज लेनी है, तो कई देशों में अराजकता फैल जाएगी। ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि कोविड-19 वैक्सीन की मिक्स एंड मैच एप्रोच से इम्युन सिस्टम को बहुत ज्यादा मजबूती मिलती है। ऑक्सफोर्ड के नेतृत्व वाली काम-कोव स्टडी में शोधकर्ताओं ने अलग-अलग प्रमुख वैक्सीन और बूस्टर वैक्सीन लगाने की संभावना को तलाशा। स्टडी में पाया गया कि दो एंटीबॉडीज वाली अलग-अलग डोज से मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। ब्रिटेन के डिप्टी चीफ मेडिकल ऑफिसर प्रोफेसर जोनाथन वैन टैम के मुताबिक ब्रिटेन में अभी सभी वयस्कों के लिए एक ही कंपनी की पर्याप्त वैक्सीन हैं। इसलिए ट्रायल का प्रभाव देश में चल रहे वैक्सीनेशन पर नहीं पड़ेगा। मगर उन लोगों में ज्यादा एंटीबॉडी देखने को मिली, जिन्होंने फाइजर की वैक्सीन लगवाई थी। एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की दो खुराकों को मिक्स करने से परिणाम और भी बेहतर आए हैं। कुछ देशों में अब दो वैक्सीन को मिक्स कर इस्तेमाल किया जा रहा है। स्पेन और जर्मनी दूसरी डोज के तौर पर युवाओं को फाइजर या मॉडर्ना की वैक्सीन ऑफर कर रहे हैं। जबकि इन्हें पहली डोज एस्ट्राजेनेका की लगी थी। मगर एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लगवाने के बाद ब्लड क्लॉट के मामले सामने आने के बाद इन देशों ने दूसरी डोज के लिए वैकल्पिक वैक्सीन पर भरोसा जताया है।
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