पुरुषार्थ चतुष्टय प्रदायक है भागवत-पं.प्रमोद शास्त्री

कुशौली,ज्ञानपुर/भद़ोही।मानव जीवन के चार पुरुषार्थ हैं धर्म,अर्थ काम और मोक्ष; केवल मनुष्य ही क्रमशः इन चारों को प्राप्त कर सकता है और यदि न कर  पाए तो उसका मनुष्य शरीर निरर्थक माना जाएगा।  यह बात श्रेत्रिय गांव कुशौली में पं.रामचन्द्र शर्मा के यहां चल रही भागवत कथा के तीसरे दिन पं श्री प्रमोद शास्त्री जी ने कही।अपार जन समूह को उद्बोधित करते हुए आपने कहा कि श्रीमद्भागवत का चौथा स्कंद धर्म अर्थ काम मोक्ष का निरुपण करता है धर्म के लिए सात प्रकार की शुद्धि की आवश्यकता है जो क्रमशः देश ,काल, मंत्र,देह, इन्द्रिय,विचार और द्रव्य जब ए सातों शुद्ध होंगे तो धर्म कार्य फलदाई होगा, अर्थ (धन)प्राप्ति के पांच उपाय हैं माता पिता का आशिर्वाद, प्रारब्ध, उद्धम,गुरुकृपा एवं भगवद्कृपा से धन आता है;दशों इन्द्रियों को तथा मन को वश में करने से काम नियंत्रित हो सकता है और अपने स्वभाव को वश मे करने से मोक्ष मिल जाएगा। ध्रुव, प्रहलाद,जडभरत , अजामिल , भगवान कपिल की कथा ने जन मानस को भावगंगा मे डुबकी लगाई।इस अवशर पर रामेश्वर राय, लालचन्द शर्मा, आदिनाथ पांडेय आदि ने आरती पूजन कर महाराज जी से आशीर्वाद लिया।