सितंबर के पहले 15 दिनों में घटी डीजल की बिक्री, पेट्रोल की बढ़ी

नई दिल्ली । भारत में डीजल बिक्री सितंबर के पहले 15 दिनों में घटी है। बारिश के कारण मांग घटने और देश के कुछ हिस्सों में इंडस्ट्रियल गतिविधियां धीमी होने से डीजल की मांग में लगातार दूसरे माह गिरावट आई है। पेट्रोलियम कंपनियों के आंकड़ों से इसकी जानकारी मिली है। तीन पेट्रोलियम कंपनियों की डीजल बिक्री में सितंबर के पहले 15 दिनों में सालाना आधार पर गिरावट आई, जबकि पेट्रोल की मांग में मामूली बढ़ोतरी हुई है। देश में सबसे अधिक इस्तेमाल वाले ईंधन डीजल की खपत सालाना आधार पर एक से 15 सितंबर के बीच 5.8 प्रतिशत गिरकर 27.2 लाख टन रही। अगस्त के पहले पखवाड़े में भी खपत में इसी अनुपात में गिरावट आई थी।हालांकि, मासिक आधार पर डीजल की बिक्री 0.9 प्रतिशत बढ़ी है। अगस्त के पहले 15 दिनों में डीजल की बिक्री 27 लाख टन रही थी। डीजल की बिक्री आमतौर पर मानसून के महीनों में गिरती है, क्योंकि बारिश के कारण कृषि क्षेत्र में मांग कम होती है। सिंचाई, कटाई और परिवहन के लिए इस ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा बारिश के कारण वाहनों की आवाजाही भी कम होती है। अप्रैल और मई में डीजल की खपत क्रमशः 6.7 फीसदी और 9.3 फीसदी बढ़ी थी। इसकारण उस समय खेती के लिए डीजल की मांग में उछाल आया था। इसके अलावा गर्मी से बचाव के लिए वाहनों में एयर कंडीशनर का इस्तेमाल बढ़ा था। हालांकि, मानसून के आगमन के बाद जून के दूसरे पखवाड़े से डीजल की मांग घटने लगी थी। जुलाई के पहले पखवाड़े में इसमें गिरावट आई थी, लेकिन उस महीने के दूसरे पखवाड़े में इसमें तेजी रही थी।पेट्रोल की मांग भी सितंबर के पहले पखवाड़े में पिछले साल की समान अवधि से 1.2 प्रतिशत बढ़कर 13 लाख टन रही। अगस्त के पहले पखवाड़े में इसमें 8 फीसदी की गिरावट आई थी। आंकड़ों के अनुसार, मासिक आधार पर सितंबर में पेट्रोल की बिक्री 8.8 फीसदी बढ़ी है। हवाई यात्रियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इससे विमान ईंधन यानी एटीएफ की मांग सितंबर के पहले 15 दिनों में 6.8 प्रतिशत बढ़कर 2,92,500 टन पर पहुंच गई है। सितंबर 2021 के पहले पखवाड़े की तुलना में यह 53.9 फीसदी अधिक रही है। हालांकि, सितंबर 2109 से यह पांच फीसदी कम है। मासिक आधार पर जेट ईंधन की बिक्री 1.8 प्रतिशत घटी है। एक से 15 अगस्त 2023 के दौरान एटीएफ की बिक्री 2,98,000 टन रही थी। रसोई गैस या एलपीजी की बिक्री समीक्षाधीन अवधि में सालाना आधार पर 10.2 प्रतिशत बढ़कर 13.6 लाख टन पर पहुंच गई।