“भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप मे भारतेन्दु की महती भूमिका रही”― विभूति मिश्र

प्रयागराज। ९ सितम्बर को भारतवासियों की नवोदित आकांक्षा और राष्ट्रीयता के प्रतीक ‘भारतेन्दु हरिश्चन्द की जन्मतिथि’ के अवसर पर  ‘सर्जनपीठ’, प्रयागराज की ओर से ‘सारस्वत सदन-सभागार’, अलोपीबाग़, प्रयागराज से एक आन्तर्जालिक राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया था, जिसका विषय ‘स्वाधीनता-समर में भारतेन्दु हरिश्चन्द की भूमिका’ था। समारोह की अध्यक्षता कर रहे ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’, प्रयाग के प्रधानमन्त्री विभूति मिश्र ने बताया, ”भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में भारतेन्दु हरिश्चन्द की महती भूमिका रही है। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से तत्कालीन अँगरेजी राज में पराधीन भारतीयों पर किये जा रहे अत्याचारों को सार्वजनिक किया था। वे इस बात के प्रति चिन्तित थे कि अँगरेज़ भारतीय सम्पदा का दोहन कर रहे थे और एक लुटेरे के रूप में उसे अपने देश ले जा रहे थे।” आयोजक भाषाविज्ञानी और समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने ‘अन्धेर नगरी चौपट राजा’ और ‘भारत-दुर्दशा’ का संदर्भ देते हुए कहा, ”भारतेन्दु हरिश्चन्द ने अँगरेज़ शासकों-द्वारा भारतीयों के साथ किये गये अत्याचार, अनाचार तथा अन्याय के प्रति अपना आक्रोश पद्य और गद्य-विधाओं के माध्यम से व्यक्त किया था। उन्होंने रचना-स्तर पर तत्कालीन ऊर्जावान् युवा साहित्यकारों को स्वतन्त्रता के प्रति प्रेरित किया था और पराधीन भारतीयों में ऐसा जोश भरा था, जिसने देश की आन पर सर्वस्व अर्पण करने के लिए प्रेरित किया था।”वरिष्ठ पत्रकार, हरदोई राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’ हरदोई का कहना है, “भारतेन्दु जी ने ‘कविवचन सुधा’ के २३ मार्च, १८७४ ई० के अंक  में ‘प्रतिज्ञापत्र’ के माध्यम से विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करते हुए, पाठकों से प्रतिज्ञा करायी थी। साहित्य में पहली बार भारतेन्दु जी ने सरकारी निर्दयता, लाचारी और परतन्त्रता जैसे मुद्दों को लेखन का आधार बनाया था।” जबलपुर से डॉ० साकेत अग्निहोत्री ने कहा, “भारतेन्दु जी की शब्दशक्ति का ही प्रभाव था कि अँगरेज़ बौखला उठे थे।” सहायक अध्यापक, आदित्य त्रिपाठी का मत है, “भारतेन्दु हरिश्चन्द जी की रचनाओं में स्वभावतः देशप्रेम की सरिता प्रवाहित होने लगती है। यह उनका मौलिक स्वभाव है।”पटियाला से प्रो० ऋचा टण्डन ने भारतेन्दु हरिश्चन्द को एक अनन्य सारस्वत स्वतन्त्रतासेनानी बताया था, जबकि अलीगढ़ से डॉ० रजनी कुमारी यादव ने ‘भारत दुर्दशा’ पर सविस्तार प्रकाश डाला था।