भगवान आदि शंकराचार्य का धर्म प्रचार का केंद्र काशी रहा

वाराणसी।कांची कामकोटि पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य शंकर विजयेन्द्र सरस्वती जी महाराज आज बुधवार शंकराचार्य जी ने चेतसिंह दुर्ग चल रहे शिवागम सभा के समापन सत्र में कहा काशी आदि शंकराचार्य जी का धर्म प्रचार का केंद्र रहा है मनीषा पंचक की रचना काशी की वेद से ही शिवागम का उदगम हुआ है शिवागम उपासना तत्वों का बोध कराता है ज्ञान कर्म उपासना को निकट से समझने का एक अवसर यह सभा है। तत्व, क्रिया जैसे अनेक विषयों के बारे में यज्ञशाला प्रदर्शनी निकटता से जानने का एक अवसर है अर्चक आगम विषय के ज्ञाता हैं साधारण आम जनता इन विषयों से अनभिज्ञ हैं उन लोगो के लिए यह एक सार्थक प्रयास है विश्वास से ही धर्म प्रचार होता है आगम शिक्षा में धर्म, वास्तु प्रयोग फल आदि निहित हैं अर्चक द्वारा मंदिर में किया गया अनुष्ठान समाज के हित के लिए होता है मंदिर धर्म का केन्द्र है मंदिर के द्वारा ही समाज में नैतिकता, शांति, शुचिता, स्वक्ष वातावरण का संचार होता हैं पूर्व के कालों में गांव में पूजा अर्चना के लिए गांववासी जुड़कर धर्म के प्रति • अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता था जो आज कम देखने को मिलता है लोग निति, नियति और निर्वाह का सही प्रयोग मंदिर व्यवस्था के लिए करना चाहिए काशी में संपन्न हो रहे इस •आयोजन में 170 विद्वानों ने भाग लेकर इस शिक्षा को गरिमामय बनाते हुए अक्षुण्ण रखने का एक संदेश दिया है।सभा के प्रारंभ में वाराणसी पुलिस आयुक्त अशोक मुता जैन ने विद्वानों का सम्मान किया इस अवसर पर तीन पुस्तकों का विमोचन हुआ काशी खंड 2 चंडी यज्ञ पद्धति 3 शिव सहस्रनाम भाष्य सुन्दर मूर्ति शिवाचार्य दीपा दुरैस्वमी विश्वनाथ भट्ट आदि ने विचार व्यक्त किया धन्यवाद ज्ञापन मठ के प्रबंधक वी एस सुब्रमण्यम मणि ने किया इस अवसर पर अलकेश पाण्डेय अविनाश पाण्डेय दीपक शुक्ला आर के दुवे के रमन शेखर आदि मुख्य रूप से उपस्थित थे।