देवरिया।जिलाधिकारी अखण्ड प्रताप सिंह बताया है कि लम्पी स्किन रोग गोवंशीय एवं महिषवंशीय पशुओं की विषाणु जनित रोग है। यह रोग पशुओं में मक्खी, चिचड़ी एवं मच्छरों के काटने से होता है। जनपद में रोग के संरक्षण/फैलाव/प्रसार हेतु पशुपालन के कर्मियों/कर्मचारियों द्वारा अभियान चलाकर गोवंशीय पशुओं को टीका निःशुल्क लगाया जा रहा है तथा कन्ट्रोल रूम डा० यू०के० सिंह, उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी, राजकीय पशु चिकित्सालय, देवरिया सदर, मोबाईल नम्बर 9415833790 द्वारा संचालित कराया जा रहा है।जिलाधिकारी ने पशुपालकों को अवगत कराया है कि किसी भी पशु में बीमारी होने पर नजदीक के पशु चिकित्सालय पर सर्पक करके उपचार कराये, किसी भी दशा में बिना पशु चिकित्सक के परामर्श के कोई उपचार स्वयं न करें। जनपद में लम्बी स्किन डिजीज के बचाव हेतु पशुपालन के कर्मियों/ कर्मचारियों द्वारा अभियान चलाकर गोवंशीय पशुओं को टीका निःशुल्क लगाया जा रहा है। सभी पशुपालन अपने पशुओं को टीका अवश्य लगवायें जिलाधिकारी ने बताया है कि पशुपालकों को रोग के संरक्षण/फैलाव /प्रसार हेतु आवश्यक बिन्दुओ का कड़ाई से पालन करना जरुरी है। पशुओं में हल्का बुखार होना, पूरे शरीर पर जगह-जगह नोडयूल/गांठो का उमरा हुआ दिखाई देना एवं बीमारी से ग्रसित पशुओं की मृत्यु दर अनुमान 1 से 5 प्रतिशत होना लम्पी स्किन डिजीज बीमारी के लक्षण है। उन्होंने पशुपालकों को अवगत कराया है कि बीमारी से ग्रसित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना, पशुओं में बीमारी फैलाने वाले घटकों की संख्या को रोकना अर्थात पशुओं को मक्खी, चिचडी एवं मच्छर के काटने से बचाना, पशुशाला की साफ-सफाई दैनिक रूप से करना तथा डिसइन्फेक्सन का स्प्रे करना, संक्रमित स्थान की दिन में कई बार फारमलीन/ईथर/क्लोरोफार्म/ एलकोहल से सफाई करना, संक्रमित पशुओं को खाने के लिए संतुलित आहार तथा हरा चारा देना, मृत पशुओं के शव को गहरे गढढ़ें में दवाया जाना बीमारी की रोकथाम एवं नियन्त्रण के उपाय है। जिलाधिकारी ने बताया है कि पशुपालक संक्रमण से बचाव हेतु आवंला, अश्वगन्धा, गिलोय एवं मुलेहटी में से किसी एक को 20 ग्राम की मात्रा में गुड़ मिलाकर सुबह-शाम लड्डू बनाकर खिलायें, अथवा तुलसी के पत्ते-एक मुटठी, दालचीनी-5 ग्राम, सोठा पाउडर-5 ग्राम, काली मिर्च- 10 नग को गुड़ में मिलाकर सुबह-शाम खिलाये। संक्रमण को रोकने के लिए पशु बाड़े में गोबर के कन्डे में गूगल, कपूर नीम के सूखे पत्ते, लोहवान को डाल कर सुबह-शाम धुंआ करें। पशुओं के स्नान के लिए 25 लीटर पानी में एक मुट्ठी नीम की पत्ती का पेस्ट एवं 100 ग्राम फिटकरी मिलाकर प्रयोग करें घोल के स्नान के बाद सादे पानी से नहलायें। उन्होंने बताया है कि संक्रमण होने के बाद देशी औषधी व्यवस्था भी आवश्यक है, इसके लिए नीम के पत्ते- एक मुट्ठी, तुलसी के पत्ते एक मुट्ठी, लहसुन की कली -10 नग, लौंग- 10 नग, काली मिर्च- 10 नग, जीरा- 15 ग्राम, हल्दी पाउडर- 10 ग्राम, पान के पत्ते-5 नग, छोटे प्याज-2 नग पीस कर गुड़ में मिलाकर सुबह-शाम 10 से 14 दिन तक खिलाये। खुले घाव के देशी उपचार के लिए नीम के पत्ते- एक मुटठी, तुलसी के पत्ते 1 मुट्ठी, मेंहदी के पत्ते- 1 मुट्ठी, लहसुन की कली 10, हल्दी पाउडर-10 ग्राम, साफ नारियल का तेल 500 मिली० को मिलाकर धीरे-धीरे पकाये तथा ठण्डा होने के बाद नीम के पत्ती पानी में उबाल कर पानी से घाव करने के बाद जख्म पर लगाये।
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