नयी दिल्ली। दस साल की उम्र में पांव में कांच चुभने के कारण बैडमिंटन करियर लगभग खत्म होने से लेकर पैरा-बैडमिंटन राष्ट्रीय चैंपियन बनने तक वैष्णवी पुनेयानी ने अपने छोटे से जीवन में लंबा सफर तय किया है, और अब उनकी नज़रें एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक पर जम गयी हैं।राष्ट्रीय राजधानी में रहने वाली 17 वर्षीय पैरा-बैडमिंटन एथलीट वैष्णवी ने सोचा नहीं था कि वह पेशेवर तौर पर बैडमिंटन खेलेंगी। अपने पिता और भाई के साथ मैदान जाते-जाते बैडमिंटन में उनकी रूचि पैदा हुई, हालांकि 2015 में पैर में कांच लगने से उनके पेशेवर शटलर बनने के सपने को एक बड़ा झटका लगा।यह चोट वैष्णवी का मनोबल नहीं तोड़ सकी, लेकिन वह कोर्ट पर पहले की तरह नहीं खेल पा रही थीं।वैष्णवी ने यूनीवार्ता से बातचीत में कहा, “पैर में कांच लगने से जख्म इतना गहरा था कि चोट पर प्लास्टर करवाना पड़ा और मैं दो-तीन महीने चल भी नहीं पाई। मैं उस चोट के बाद से अपना दायां पैर नहीं उठा पाती हूं। पैर की इस दिव्यांगता के बाद मैंने बैडमिंटन खेलना चाहा लेकिन ठीक से पैर न उठा पाने के कारण मैं प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाई।”यहां वैष्णवी का सफर खत्म हो सकता था अगर उन्हें पैरा बैडमिंटन के बारे में न पता चला होता। उन्होंने कई कोचों से संपर्क किया और प्रशिक्षण हासिल करने के बाद अप्रैल 2022 मैं पैरा बैडमिंटन में एसएल4 श्रेणी में राष्ट्रीय स्तर पर पदार्पण किया। लखनऊ में गौरव खन्ना पैरा बैडमिंटन अकादमी में एक साल तक प्रशिक्षण लेने के बाद वैष्णवी ने अप्रैल 2022 में उत्तर प्रदेश राज्य चैंपियनशिप में दो पदक जीते, जबकि सितंबर में पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उतरते हुए उन्होंने युगांडा पैरा बैडमिंटन 2022 में एक स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक हासिल किया।
वैष्णवी ने उत्तर प्रदेश से युगांडा तक अपनी छाप छोड़ दी थी, लेकिन उनके करियर का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव 2023 पैरा-बैडमिंटन राष्ट्रीय चैंपियनशिप थी जहां उन्हें देश के धुरंधरों का सामना करना था। वह इस परीक्षा में खरी उतरीं और राष्ट्रीय चैंपियनशिप में उन्होंने महिला एकल, महिला युगल और मिश्रित युगल सहित तीनों प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल किये।वैष्णवी ने राष्ट्रीय चैंपियनशिप के अपने अनुभव पर कहा, “राष्ट्रीय चैंपियनशिप में मैंने तीन गोल्ड मेडल जीते और महिला एकल में जो स्वर्ण आया वह पांच साल की राष्ट्रीय चैंपियन को हराकर आया। राष्ट्रीय चैंपियन बनना मेरे जीवन में एक अहम मोड़ साबित हुआ। इसके बाद कई अकादमियों ने मुझसे संपर्क किया। कई प्रायोजक भी संपर्क में हैं। यह मेरे करियर का एक अहम पड़ाव था।”गतिशीलता खोने से लेकर राष्ट्रीय चैंपियनशिप बनने तक वैष्णवी के माता-पिता ही थे जो लगातार उनके साथ खड़े रहे और उन्हें संबल देते रहे। वैष्णवी बताती हैं कि लखनऊ में गौरव खन्ना अकादमी में प्रशिक्षण के दौरान उनके माता-पिता उनके साथ रहे और अब वे उन्हें हैदराबाद में स्थित ‘भारतीय बैडमिंटन का मक्का’ कही जाने वाली पुलेला गोपीचंद अकादमी जाने के लिये भी प्रोत्साहित कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, “मेरे परिवार ने हमेशा मेरा समर्थन किया। जब मैंने लखनऊ में प्रशिक्षण लिया तब मेरे मां और पिता दिल्ली छोड़कर मेरे साथ रहे। वे हमेशा मुझे आगे बढ़ते रहने के लिये प्रेरित करते हैं और कहते हैं कि रुकना नहीं है। मैं अभी सिर्फ 17 साल की हूं इसलिये माता-पिता के मन में थोड़ा डर भी रहता है लेकिन जीवन में कुछ भी अपने आप नहीं मिल जाता। अगर आपको कुछ पाना है तो डर से आगे बढ़ना पड़ता है। अगर मैं हैदराबाद भी जाऊंगी तो मेरे माता-पिता मेरे साथ नहीं आ पायेंगे। इन सब चीज़ों के लिये तैयार रहना होता है।”राष्ट्रीय चैंपियन बनने के बाद वैष्णवी चीन के हांग्झोउ में 22 सितंबर से होने वाले पैरा-एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने का लक्ष्य बना रही हैं। वैष्णवी को हांग्झोउ जाने वाली पैरा-बैडमिंटन टीम में रैंकिंग के आधार पर चुना गया है और प्रबंधन को उनसे पदक की उम्मीद है।वैष्णवी ने कहा, “एशियाई खेलों में मेरा लक्ष्य स्वर्ण पदक जीतना है। वहां प्रतिस्पर्धा मुश्किल है लेकिन मैं उसके लिये तैयारी कर रही हूं। कोई भी खेल हो, आपके यही चाहते हैं कि आप अपनी ओर से सर्वश्रेष्ठ प्रयास करें। अगर आप जीत-हार के बारे में ज्यादा सोचेंगे तो उससे दबाव ही बढ़ेगा। आपको सिर्फ खेल का आनंद लेने की ज़रूरत है।”
उन्होंने कहा, “मेरा अंतिम लक्ष्य पेरिस ओलंपिक 2024 ही है, लेकिन मैं अभी उतनी दूर तक नहीं सोच रही। एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतना ही बड़ी बात होगी, और उसके बाद मैं पूरी तरह पेरिस ओलंपिक पर ध्यान केन्द्रित करूंगी। यह मुश्किल होगा, लेकिन अगर आप कुछ करना चाहते हैं तो उसमें ईश्वर भी आपकी मदद करता है।”