जल, जंगल, जमीन से भारती संस्कृति बनी रहे सुरक्षित-भगवान दास

सोनभद्र। कलेक्ट्रेट परिसर में वृहस्पतिवार को गांधी प्रतिमा पार्क स्थल पर राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद के बैनर तले एक दिवसीय धरना प्रदर्शन करते हुए अपनी विभिन्न मांगों को लेकर राष्ट्रपति नामित ज्ञापन जिलाधिकारी प्रतिनिधि को सौंपकर अपनी आवाज बुलंद की। वहीं जिलाध्यक्ष भगवान दास ने बताया कि भारत के विभिन्न राज्यों में निवास करने वाले आदिवासीयों की संस्कृति और पहचान समाप्त करने के लिए एवं विकास के नाम पर जल, जंगल और जमीन से बेदखल करने के लिए बनाये जा रहे संसद द्वारा असंवैधानिक कानूनों पर तत्काल रोक लगाकर, संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार अधिकार सुनिश्चित होने चाहिए जिसके लिए संगठन एकत्रित हैं। वही उन्होंने बताया कि संविधान में आदिवासी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में पहचान प्राप्त है और इसी पहचान के आधार पर तमाम प्रकार की सामाजिक, शैक्षणिक, धार्मिक, राजनितिक, सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित करने के लिए विभिन्न अनुच्छेदों और अनुसूचियों में अधिकार प्राप्त है। बिडंबना यह है कि जिन तमाम विदेशी आक्रमणकारियों से लड़ते हुए गुलाम भारत में आदिवासी महापुरुषों ने जल, जंगल, जमीन और अपनी संस्कृति को सुरक्षित करने के लिए जान की बाजी लगाई थी, लेकिन तथाकथित 1947 को मिली आजादी और हमें 1950 में मिले अधिकारों के बावजूद विकास के नाम पर, पर्यावरण संरक्षण के नाम एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण के नाम पर आदिवासीयों को उनके जल, जंगज और जमीन से विस्थापित किया गया और उनका पुर्नवास करने का कोई ईमानदार प्रयास नहीं हुआ। जबकी संविधान में अनुच्छेद 244 के तहत अनुसूची 5 और 6 में उल्लेख है कि इन क्षेत्रों में केंद्रिय या राज्य सरकार को दखल देने का अधिकार नहीं होगा। बल्कि जनजाति मंत्रणापरिषद की स्थापनाकर वही विकास की सारी संभावनाओं को जमीन पर उतारने का काम करें और उसका नियंत्रण प्रदेश में राज्यपाल और देश में राष्ट्रपति के अधीन होगा। लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के विरोध में राज्य और केंद्र की सरकारे लगातार आदिवासीयों के विरोध में कानून बनाकर आदिवासियों को बेदखल करने का काम कर रही है। इसलिए देशभर के लाखों जनजातियों के सामाजिक संगठनों में आक्रोश होने से उन्हें ओदालन करना पड रहा है और हम संगठनों ने अपनी बुनियादी और जायज मांगों को एकत्रित कर आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए यह कदम उठाया है। हमारी निम्नलिखित मांगे है कृपया आप संविधान के दायरे में रहकर हमारी मांगो पर विचार कर उचित कार्यवाही करें।