सिद्धार्थनगर।आग के कहर ने सैकड़ों किसानों के अरमानों को जलाकर राख किया। रबी के सीजन में गेहूं की तैयार खड़ी फसल धू-धू कर जली क्योंकि अग्निशमन केंद्र संसाधन विहीन हैं। अन्नदाताओं को आग की लपटों से हुए नुकसान की भरपाई को लेकर मरहम लगाने के लिए सरकारी प्रावधान तो हैं, मगर अबतक किसी भी किसान को मदद नहीं मिली है। महतिनियां, चौखड़ा, मन्नीजोत, भारतभारी, भवानीगंज, औराताल, बेवां और बढ़नीचाफा के प्रभावित किसान मदद के इंतजार में हैं।अगलगी के मामलों में मदद के लिए राजस्व विभाग की भूमिका अहम होती है। इसी रिपोर्ट पर मंडी समिति मदद देती है। कई मामलों में दो विभागों की भी जांच रिपोर्ट आधार बनती है। इसकी प्रक्रिया ही इतनी जटिल है कि प्रभावितों को तत्काल आर्थिक मदद मिलने की कहीं कोई गुंजाइश नहीं है। दैवीय आपदा से प्रभावित लोगों को ही मुआवजा दिया जाता है। जिसमें फसल जलने पर सहयोग देने की जिम्मेदारी मंडी समिति की है। ओलावृष्टि, घरेलू आग, पानी और सूखा को ही दैवीय आपदा में शामिल किया है, जबकि अन्य कारणों से फसल बर्बादी को मुआवजा की श्रेणी में नहीं रखा गया है। मुआवजे की भी न्यूनतम और अधिकतम धनराशि भी पहले से ही निर्धारित है। आग लगने से फसल नष्ट होने पर मुआवजा अलग-अलग निर्धारित है। ढाई एकड़ से कम फसल के राख हो जाने पर अधिकतम 15 हजार रुपये का मुआवजा, ढाई एकड़ से पांच एकड़ के मध्य 20 हजार रुपये अधिकतम मुआवजे का प्रावधान है। इस वर्ष लगभग 135 किसानों की 400 बीघे फसल जली जिन्हें अभी तक क्षतिपूर्ति नहीं मिली।
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