हम स्वाधीनता-संग्राम के क़लम के सिपाहियों को भूलते जा रहे हैं- आचार्य पं० पृथ्वीनाथ

 प्रयागराज। ‘भाषा संस्थान, भाषा विभाग’, उत्तरप्रदेश-शासन और ‘मानव गौ संस्थान’, प्रयागराज के संयुक्त तत्त्वावधान (‘तत्वाधान’ और ‘तत्वावधान’ अशुद्ध हैं। मे कल  ‘हिन्दुस्तानी एकेडेमी’,  प्रयागराज के सभागार मे एक गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमे मुख्य अतिथि के रूप मे आर० एस० वर्मा (पूर्व-मण्डलायुक्त, इलाहाबाद), विशिष्ट अतिथि के रूप मे सामाजिक कार्य एवं एलेक्ट रोटरी क्लब, इलाहाबाद एकेडमिया आफ़ताब अहमद तथा सामाजिक कार्यकर्त्री एवं एलेक्ट रोटरी क्लब, इलाहाबाद एकेडमिया आसरा नवाज़ थीं। गोष्ठी के प्रमुख वक्ता के रूप मे भाषाविज्ञानी एवं समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की भूमिका थी। वक्ता के रूप मे साहित्यकार, विज्ञानी एवं समीक्षक डॉ० संजय सिंह और शाइर डॉ० नायाब बलियावी थे।आरम्भ मे अतिथियों एवं वक्तावृन्द ने दीप-प्रज्वलित कर, गोष्ठी का शुभारम्भ किया था। उसके अनन्तर समस्त अतिथि और वक्तागण को शॉल और प्रतीकचिह्न से आभूषित किया गया।मुख्य अतिथि आर० एस० वर्मा ने कहा, “हमारे साहित्यकारों ने ऐसी-ऐसी रचनाएँ देश को दिये थे, जो आज हम सबके लिए प्रेरणा का विषय है। आज के परिदृश्य मे उसी की ज़रूरत है। ऐसे ही साहित्यकारों का हमारा समाज सम्मान करेगा।” मुख्य वक्ता के रूप मे आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने अपना विस्तृत व्याख्यान करते हुए बताया, “सच तो यह है कि हमारे देश के विविधभाषीय साहित्यकारों ने स्वतन्त्रता-संग्राम मे अपने जिस प्रकार के वैचारिक और व्यावहारिक भूमिका-निर्वहण किये थे, वे ऐतिहासिक रहे हैं; परन्तु समन्वित रूप मे उन सभी साहित्याकारों की सक्रिय भूमिका और महत् योगदान का जिस रूप मे एक समग्र ग्रन्थ का प्रणयन और सम्पादन होना चाहिए था, वह अभी शेष है। हमारे उन साहित्यकारों का उपयुक्त मूल्यांकन किया जाना अपरिहार्य है। हम स्वाधीनता-संग्राम के क़लम के सिपाहियों को भूलते जा रहे हैं। हमे जानना चाहिए कि साहित्यभारतेन्दु-युग से लेकर आचार्य द्विवेदी-युग, प्रेमचन्द-प्रेमचन्दोत्तर, छाया, छायावादोत्तर इत्यादिक युग के साहित्यकारों ने अँगरेज़ीराज की बरबर्रता और निरंकुशता पर रचना, मानसिक और दैहिक स्तर पर जिस प्रकार से अपनी जीवटता का प्रभावमय परिचय प्रस्तुत किया है, वह दुष्प्राप्य है।” आचार्य पाण्डेय ने अपने शोधात्मक व्याख्यान मे हिन्दी, संस्कृत, अहिन्दीभाषाभाषी तथा वैश्विक पटल पर अँगरेज़ी इत्यादिक भाषाओं के साहित्यकारों की स्वातन्त्र्य-समर मे अँगरेजी शासन के विरुद्ध भूमिका का विश्लेषण प्रस्तुत किया था।असरा नवाज़ ने कहा, “जिस देश को आज़ादी दिलाने मे हमारे जिन साहित्यकारों की महती भूमिका थी, उसका स्मरण करते हुए, आज देश मे जिस प्रकार से उस स्वतन्त्रता के मोल को न समझते हुए, अराष्ट्रीय कृत्य किये जा रहे हैं, उसके विरुद्ध आज के साहित्यकारों को एकजुट होना होगा।” आफ़ताब अहमद ने कहा,  हमारे लिए वे साहित्यकार वन्दनीय हैं, जिन्होंने देश को आज़ाद कराने मे अपनी भूमिका निभायी थी।” इसी अवसर पर गीतकार यश मालवीय ने सुनाया, “हम संगम का पानी हैं, हम सब तीरथ का पानी हैं। मिलकर गंगा-जमुना लहरें, तुलसी-कबिरा के बानी हैं।” डॉ० असलम इलाहाबादी, डॉ० नायाब बलियावी तथा सय्यद रज़ा अब्बास ने राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत रचना सुनायी थी।वक्ता के रूप मे डॉ० नायाब बलियावी ने सुभाषचन्द्र बोस से सम्बन्धित एक रोचक प्रसंग को प्रस्तुत किया था। दूसरे वक्ता डॉ० संजय सिंह ने कहा, “आज़ादी की लड़ाई के समय साहित्यकारों की पूरी पीढ़ी बहुत सक्षम और सशक्त थी, जिसने निडरतापूर्वक सेनानियों का समर्थन किया था। भारतेन्दु प्रेमचन्द, प्रसाद तथा माखनलाल चतुर्वेदी ने हिन्दी, इक़बाल और हसरत मोहानी ने उर्दू, टैगोर, शरत तथा बंकिम ने बांग्ला तथा सुब्रह्मण्य भारती ने तमिल मे स्वाधीनता का आह्वान किया था।”इस समारोह का कुशलतापूर्वक संयोजन शफ़कत अब्बास ‘पाशा’ और विनय श्रीवास्तव ने किया था। संगोष्ठी का प्रभावकारी संचालन शाइर रुस्तम इलाहाबादी ने किया था।