मनुष्य के जीवन में गुरु का स्थान सर्वप्रथम-हरिध्यानानंद

सोनभद्र। मानव उत्थान सेवा समिति के तत्वाधान में गुरु पूजा का पावन पर्व उरमौरा राबर्ट्सगंज स्थित आश्रम पर सदगुरुदेव सतपाल महाराज के परम शिष्य महात्मा हरिध्यानानंद के सानिध्य में बड़े हर्षाेल्लास के साथ मनाया गया।महात्मा ने अपने उद्बोधन में गुरुमहिमा का वर्णन करते हुए कहा गुरु मानव रूप में होकर भी ऐसे महामानव होते है जिनके अमृत वचनो से लोगो को मन शुद्ध बुद्ध व पवित्रता से भर उठता है और भक्ति की अविरल धारा मे स्नान करने से उनका कायाकल्प अर्थात मूल रूपांतर ही हो उठता है वे शाश्वत सत्य के स्वरूप है जो शिष्य की आत्मा के सच्चे उद्धारक है शिष्य का मन जो अज्ञान व शंसय मे दूबा है उसे वे अपनी अहेतु की कृपा से मुक्त करते है । गुरु उस महापुरूष को कहा जाता है जो शिष्य के अज्ञान अंधकार को हटाकर उसे परमात्मा के परम स्वरूप का दिग्दर्शन करा दें।गुरु और शिष्य का सम्बंध समर्पण का होता है शिष्य में गुरु के प्रति जितना अधिक प्रेम श्रद्धा और विश्वास होता है उतना ही उसके ऊपर गुरु की अधिक कृपा होती है।कार्यक्रम के अंत विशाल भण्डारे व प्रसाद की व्यवस्था की गयी कार्यक्रम को सम्पन्न कराने में मुख्य रूप से हरिश्चंद्र, गणेश प्रसाद, रमेश पाठक, रवि केशरी, डॉ एस. पी. गुप्ता, बालमुकुंद सिंह, सूरजबली सिंह, राम नरेश, संजीव अग्रवाल, सुनिल सिंह, राजेश पाठक, रूपनारायण सिंह, महेंद्र प्रसाद आदि ने सहयोग किया।