प्रयागराज।स्व अध्ययन सामग्री दूरस्थ शिक्षा का अभिन्न अंग है। दूरस्थ शिक्षा प्रणाली में छात्रों के सामने शिक्षक नहीं होते। पाठ्य सामग्री ही छात्रों के सामने शिक्षक के रूप में होती है। ऐसी स्थिति में स्व अध्ययन सामग्री को सरल विधा में लिखा जाना चाहिए जिससे वह शिक्षार्थियों के समझ में आ सके और उनका ज्ञानार्जन कर सके।उक्त उद्गार प्रोफेसर आशुतोष गुप्ता, निदेशक, विज्ञान विद्या शाखा एवं निदेशक, आंतरिक गुणवत्ता सुनिश्चियन केंद्र सीका ने मुक्त विश्वविद्यालय के विभिन्न विद्याशाखाओं में नवनियुक्त सहायक आचार्यों (संविदा) को स्व-अध्ययन सामग्री के लेखन कार्य के सम्बन्ध में बुधवार को दूरस्थ शिक्षा एवं स्व-अध्ययन सामग्री विकास विषय पर आयोजित एकदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में व्यक्त किए।प्रोफेसर गुप्ता ने कहा कि पाठ्य सामग्री लेखन का कार्य अपने विषय में दक्ष शिक्षक ही कर सकते हैं। उन्होंने कुलपति प्रोफेसर सीमा सिंह के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके निर्देशन में सभी नवनियुक्त शिक्षकों को लेखन सामग्री निर्माण में अपनी प्रतिभा एवं क्षमता विकसित करने का सुअवसर प्राप्त हो रहा है। इस अवसर पर प्रोफेसर गुप्ता ने दूरस्थ शिक्षा पद्धति में अध्ययनरत छात्रों को प्रदान की जाने वाली अध्ययन सामग्री की अवधारणा, उपभोग तथा महत्व को विस्तार से रेखांकित किया। आन्तरिक गुणवत्ता सुनिश्चियन केन्द्र के तत्वावधान में लोकमान्य तिलक शास्त्रार्थ सभागार में आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में विचार व्यक्त करते हुए प्रोफेसर एस कुमार, निदेशक, समाज विज्ञान विद्या शाखा एवं उप निदेशक, आंतरिक गुणवत्ता सुनिश्चियन केंद्र ने कहा कि पाठ्य सामग्री ही एक ऐसा माध्यम है जिसमें छात्र दूर होते हुए भी हमारे पास रहता है। यह हमारे ज्ञान एवं कौशल पर निर्भर करता है कि हम छात्र को कितनी गुणवत्तापूर्ण पाठ्य सामग्री तैयार करके देते हैं। पाठ्य सामग्री में ही शिक्षक का चेहरा छुपा होता है। उन्होंने कहा कि हमें सुस्पष्ट एवं युगानुकूल पाठ्य सामग्री तैयार करने में अपने ज्ञान का बहुमूल्य उपयोग करना चाहिए। प्रशिक्षण के द्वितीय सत्र में डॉ देवेश रंजन त्रिपाठी, सह आचार्य, व्यवसाय प्रबंधन ने स्व-अध्ययन सामग्री विकास के विभिन्न चरणों को क्रमशः पीपीटी के माध्यम से प्रदर्शित कर नव नियुक्त सहायक आचार्यों की जिज्ञासाओं का समाधान किया तथा उपस्थित सहायक आचार्यों को क्रमशः 8 समूह में रखकर इकाई विकसित करने का अभ्यास कराया। जिसके अंतर्गत प्रत्येक समूह ने अपने द्वारा विकसित की गई इकाई का प्रस्तुतीकरण करते हुए उसमें अपेक्षित सुधारों को प्राप्त किया। प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन डॉ गौरव संकल्प ने किया।
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