संकट मोचन शताब्दी वर्ष संगीत समारोह चौथी निशा प्रभु दरबार में बह निकली गायन-वादन और नृत्य की त्रिवेणी

वाराणसी। संकट मोचन मंदिर का मुक्त प्रांगण, मुक्ता काशी मंच, मुक्त श्रोतागण, मुक्त रूप से कला साधकों की हाजिरी, शायद ही विश्व का कोई सांगीतिक मंच एसा हो जहां हाजिरी लगाने वाले कलासाधक, संगीत रसिक जनों का एक ही वक्तव्य होता है धन्य हो गये हमलोग। सही मायने में यह एक अद्भुत है, जब रात्रिव्यापी संगीत समारोह को कलाकार से लेकर श्रोता सुनते नहीं बल्कि जीते हैं।आज चौथी निशा की शुरुआती क्षणों को देखर ऐसा लगा कि यह समारोह नहीं बल्कि एक महायज्ञ है। जहां कलासाधकों के स्वर मंत्रों के हर अध्याय में वाह-आह की आहूति दी जाती है। सप्त दिवसीय संगीत समारोह की चौथी निशा का पहला पुष्प खिला भरतनाट्यम के माध्यम से कलाकार थी दिल्ली से पधारी श्रीमती रमा वैद्यनाथन। इन्होंने राम वंदना से नृत्य की शुरुआत कर, कई अध्यायों का नृत्य के माध्यम से वर्णना कर प्रस्तुति को विराम दिया। इनको साथ सहयोगी कलावृन्द ने अच्च्छी भागीदारी निभायी। रमा वैद्यनाथन की प्रस्तुति को लोगों ने काफी सराहा। अगली प्रस्तुति में न्यूयार्क से पधारे ठाकुर चक्रपाणि सिंह ने कच्छपी वीणा वादन किया। इन्होंने राग किरवानी में आलाप, जोड, झाला के पश्चात तीन ताल में विलम्बित व द्रुत गतकारी अपने वदन को विराम दिया। इनके साथ तबले पर पं. समर साहा ने विद्वतापूर्ण संगत कर, वादन को प्रभावशाली बना दिया।गायन के क्रम में मुंबई से पधारे पं. अजय पोहनकर ने गायन के माध्यम से श्रोताओं को रससिक्त कर दिया। इन्होंने राग दरबारी कन्हाडा में सर्वप्रथम एक ताल व तीन ताल में बंदिशें गाने के पश्चात भजन, ठुमरी से गायन को विराम दिया। इनके साथ तबले पर यशवंत वैष्णव व संवादिनी पर श्रीमती पारोमिता मुखर्जी ने गायन के अनुरूप भागीदारी कर गायन को एक ऊंचाई प्रदान कर दिया। चौथी निशा की अगली प्रस्तुति में उस्ताद शाहिद परवेज के शिष्यपुत्र शाकिर खां ने सितार वादन कर श्रोताओं को आनंदित कर दिया। सितार में तैयारी के साथ ही स्वर की पकड ने प्रस्तुति को और यादगार बना दिया। इन्होंने राग मालकौंस में तीन ताल में गतकारी कर जब वादन को विराम दिया श्रोता आंदोलित हो उठे। इनके साथ यशवंत वैष्णव ने अपनी पहचान के अनरूप संगत की। इन्होंने अत्यंत प्रभावशाली संगत कर सितार वादन को पूर्ण विराम लगाया।अगली प्रस्तुति में विश्वविख्यात बांसुरी वादक पं. रोनू मजुमदार ने ऐसी बांसुरी की तान छेडी कि श्रोता सुध-बुध खो गये। साथ में विख्यात तबला वादक पं. संजू सहाय ने लाजवाब संगत किया। पंडित जी ने राग बिाहग में आलापचारी के पश्चात पहले धमार फिर तीन ताल में गतकारी कर वादन के प्रथम अध्याय को विराम दिया। पं. रोनू मजूमदार ने लोगों की फरमाश पर कजरी और अंत में एक भाजन से अपने वादन को पूर्ण विराम दिया। पं. रोनू मजुमदार के साथ उनके शिष्य पुत्र ऋषिकेश मजुमदार ने बांसुरी पर साध देकर उज्ज्वल भविष्य की आस जगायी। सांतवीं प्रस्तुति में पं. जसराज के शिष्य पं. नीरज पारिख ने अपने पत्नी के साथ गायन प्रस्तुत किया इन्होंने राग रामकली में में विलम्बित एक ताल, तीन ताल में गायन कर प्रथम अध्याय को विराम दिया। इसके पश्चात राग ललित में बंदिश बाल समय रवि भक्ष लियो से गायन को विराम दिया। इनके साथ तबले पर बद्रीनारायण पंडित व संवादिनी पर मोहित साहनी ने अच्छी भागीदारी निभायी। चौथी निशा की अंतिम प्रस्तुति में संतूर वादन किया कोलकाता के शुद्धशील चटर्जी ने। इन्होंने राग विलासखानी तोडी में आलापचारी के पश्चात तीन ताल में गतकारी किया। इनका वादन श्रुति मधुर रहा। इनके साथ तबले पर युवा कलाकार गौरव चक्रवर्ती ने कुशल संगत कर वादन को प्रभावशाली बनाया।