जौनपुर। नवरात्र के नौवें दिन गुरुवार को सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की गयी। सिद्धिदात्री के पूजन के साथ ही नौ दिवसीय चैत्र नवरात्र व्रत का समापन हो गया। नवरात्र पूजन से जुड़ी कई परंपराएं हैं। इनमें से एक है कन्या पूजन। कन्या पूजन से न सिर्फ मां आदि शक्ति प्रसन्न होती हैं बल्कि सुख व समृद्धि भी आती है। शास्त्रों में नवरात्रि के अवसर पर कन्या पूजन या कन्या भोज को अत्यंत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। सनातन धर्म में सदियों से ही कन्या पूजन और कन्या भोज कराने की परंपरा है। विशेषकर कलश स्थापना करने वालों और नौ दिन का वृत रखने वालों को लिए कन्या भोज को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। भविष्यपुराण और देवीभागवत पुराण में कन्या पूजन का वर्णन किया गया है। इस वर्णन के अनुसार नवरात्रि का पर्व कन्या भोज के बिना अधूरा है। दो वर्ष से लेकर दस वर्ष तक की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी गई हैं। यही कारण है कि नवरात्र में इसी उम्र की कन्याओं के पैरों का विधिवत पूजन कर भोजन कराया जाता है। मान्यता है कि होम, जप और दान से देवी उतनी प्रसन्न नहीं होतीं, जितनी कन्या पूजन से होती है। कहा जाता है कि विधिवत, सम्मानपूर्वक कन्या पूजन से व्यक्ति के मन से भय दूर हो जाता है। बाधाएं भी दूर हो जाती हैं। इनकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है। इन दिनों में घर में छोटी बालिकाएं बुलाई जाती हैं, उन्हें प्रसाद परोसा जाता है और टीका आदि करके उनसे आशीर्वाद मांगते हैं. इसके पीछे मान्यता है कि बालिकाएं साक्षात मां दुर्गा का रूप होती हैं। कन्याओं के पैर धुलवाए जाते हैं और चटाई बिछाकर उन्हें बिठाते हैं. हाथ में कलावा बांधा जाता है और माथे पर तिलक लगाते हैं। प्रसाद में हलवा, चना, पूरी, नारियल और बताशे आदि परोसतें हैं कन्याओं को साथ ही कोई उपहार, श्रृंगार की वस्तु, एक रुपए या श्रृद्धा से कोई भी राशि दी जाती है इसके बाद कन्याओं के पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है और उन्हें घर भेजते हैं. इस दिन गाय को पूड़ी खिलाना भी बेहद शुभ माना जाता है।
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