लौहार। पड़ोसी देश पाकिस्तान जहां वर्तमान में पाई-पाई को मोहताज है। वहीं विदेशी मुद्रा के लिए आईएमएफ से लेकर दूसरे देशों के आसरे वक्त काट रहा है, वहीं पाकिस्तानी अफसरों की लाल फीताशाही की वजह से फाइलों में ही 23 अरब डॉलर घूम रहे हैं। अगर ये पैसे सही समय पर पाकिस्तान को मिल गया होता, तब देश की बड़ी आबादी के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा नहीं होता।पाकिस्तानी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, ये फंड उस समय में फाइलों में अटका पड़ा है, जब पीएम शहबाज शरीफ और वित्त मंत्री इशाक डार आईएमएफ कार्यक्रम को पुनर्जीवित करने के लिए 5 अरब से 7 अरब डॉलर की व्यवस्था करने की जद्दोजहद कर रहे हैं और उस कोशिश में आवाम पर भारी भरकम टैक्स का बोझ लाद रहे हैं।ब्यूरोक्रेटिक लापरवाही की वजह से विदेशी कर्जदाताओं ने पाकिस्तान को लगभग 23 अरब डॉलर के ऋण और अनुदान का भुगतान रोक रखा है। इसमें कुछ 15 साल पुराना है। इसी खेप में केरी-लुगर एक्ट के तहत अमेरिका से मिला 1.6 अरब डॉलर का अनुदान भी शामिल है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सप्ताह जारी आर्थिक मामलों के मंत्रालय की त्रैमासिक रिपोर्ट में इस फंड के बारे में खुलासे किए गए हैं, जिसमें अटकी योजनाओं के परियोजना-वार विवरण और राशि का जिक्र है। इन अटकी परियोजनाओं में अमेरिका, चीन, सउदी अरब सहित कई देशों के अनुदान शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सूत्रों के अनुसार, इतनी बड़ी राशि के पीछे सामान्य कारक सरकारी अनुमोदन की धीमी प्रक्रिया, ऋण वार्ता में देरी, खरीद विवरण को अंतिम रूप देने वाली सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी, लंबी बोली प्रक्रिया और निष्पादन एजेंसियों की क्षमता की कमी और अनुबंध प्रबंधन और परियोजना निगरानी में कमी है।
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