धीना।बिकास खंड बरहनी अंतर्गत स्थित ग्राम सभा अमड़ा में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक सुन्दर राज जी महाराज ने कहा एक बार भगवान शंकर और सती दोनों ही कथा सुनने गए थे।भगवान शंकर ने कथा का मन लगाकर श्रवण किया वहीं मां सती ने कथा में बैठकर संत पर संदेह किया और कथा का अपमान किया। कथा को कोई सुनता है तो भावविभोर होकर सुनता है शंकर और सती दोनों ही कथा में बैठे रहे पर भगवान ने शंकर को कथा सुनाया और उन्हें आनंद प्राप्त हुआ मां सती कथा में बैठकर भी कथा का श्रवण नहीं कर पाई परिणाम स्वरूप भगवान शिव को प्रभु का दर्शन प्राप्त हुआ। भगवान शिव पहचान गए परंतु मां सती पहचान नहीं पायी, मां सती भगवान की परीक्षा लेने चली गईं।मानस में तीन देवियां हैं और उन्होंने तीन तरीके से भगवान को पाना चाहा है, एक ने परीक्षा से, दूसरे ने समीक्षा से, तीसरे ने प्रतीक्षा से पाना चाहा। परीक्षा से सती ने समझना चाहा तो भगवान समझ में नहीं आए।शूर्पणखा ने उन्हें समीक्षा से समझना चाहा तो भी समझ नहीं आए लेकिन माता शबरी ने उन्हें प्रतीक्षा से पाना चाहा तो भगवान नंगे पांव चलकर मां शबरी के दरवाजे पर आए इसलिए भगवान समीक्षा और परीक्षा से नहीं मिलते भगवान तो केवल प्रतीक्षा से मिलते हैं। मां सती ने सीता का रूप धारण किया तो महादेव ने उनका परित्याग कर दिया।जीवन में व्यक्ति अपने एक गलती को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलता है और सौ झूठ को छुपाने के लिए हजार अपराध करता है। हजार अपराध करने से अच्छा है कि हम एक सत्य को स्वीकार कर लें, इससे हम हजार अपराध करने से बच जाएंगे भगवान शंकर ने सती का परित्याग कर धर्म की रक्षा की।सुंदर राज यति स्वामी जी महाराज ने कहा कि सत्संग से विवेक होता है इसलिए कथा अनवरत सुननी चाहिए इस अवसर पर मृत्युंजय सिंह, दीपू,यशवंत पाठक, अच्युता नंद त्रिपाठी, शिवपूजन सिंह,रामविलास सिंह, सत्येंद्र सिंह, प्रमोद कुमार वर्मा, अशोक सिंह, वेद प्रकाश सिंह, अर्जुन सिंह, शिव बचन सिंह, दिग्विजय सिंह, बलराम पाठक, चंद्रिका सिंह इत्यादि सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहे।
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