प्रयागराज।भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिदूत पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जुबानी से रूबरू कराते हुए भारत के अमृत महोत्सव के अवसर पर माध्यम संस्थान (रंगमंडल) द्वारा नाटक “क्रांतिदूत पंडित राम प्रसाद बिस्मिल” का मंचन दूरदर्शन केंद्र में किया गया। वरिष्ठ रंगकर्मी व अभिनेता मलय मिश्र द्वारा लिखित उक्त नाटक में स्वयं मलय मिश्र ने सशक्त अभिनय किया। नाटक में रामप्रसाद बिस्मिल स्वयं अपनी कहानी बताते हैं कि 19 दिसंबर 1927 में ब्रिटीश सरकार ने उन्हें फांसी पर लटका दिया। उन्हें यह कसक सालती थी कि ईश्वर ने मां भारती की सेवा करने के लिए उन्हें मात्र 30 वर्ष की उम्र दी। इन 30 वर्षों में उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों से अंग्रेज सरकार की चूलें हिला दीं। शायद बिस्मिल एकमात्र हथियारबंद क्रांतिकारी थे जो किसी भी मिशन में अहिंसा का विचार रखते थे। बिस्मिल इस बात के कट्टर हामी थे कि देश को अंग्रेज़ों के चंगुल से छुड़ाना है तो क्रांति करनी होगी और क्रांति के लिए लोगों का संगठन बनाना होगा और संगठन चलाने के लिए धन की आवश्यकता होगी। बिस्मिल ने अपने लेखों में स्पष्ट किया है कि अगर संगठन चलाने या क्रांतिकारी गतिविधियां जारी रखने के लिए धन की आवश्यकता न होती तो उन्हें डकैती और लूटपाट की ज़रूरत न पड़ती। बिस्मिल की क्रांति के प्रति यह अवधारणा उन्हें क्रांतिकारियों की जमात में एक अलग स्थान दिलाती है। नाटक के माध्यम से संदेश दिया कि हमारे क्रांतिकारियों को उचित मान सम्मान दिया जाना चाहिए। नाटक का निर्देशन किया विनय श्रीवास्तव ने और प्रस्तुतकर्ता थे वरिष्ठ रंगकर्मी व निर्देशक डॉ अशोक कुमार शुक्ल। नाटक में मलय मिश्र, अशोक कुमार शुक्ल, रिभू श्रीवास्तव, विपिन कुमार, शचीन्द्र शुक्ल, अंशू श्रीवास्तव और ओम श्रीवास्तव ने अभिनय किया। प्रस्तुति सहायक – शोभा शुक्ला और पूर्वाभ्यास प्रभारी – सुधीर सिन्हा रहे।
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