मुर्तिहा छावनी के वन निर्भर समुदाय को उनके कब्जे की भूमि से बेदखल करने की रची जा रही साजिश

बहराइच। विश्व मानवाधिकार दिवस के अवसर पर सेवार्थ फाउंडेशन द्वारा विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी का संचालन राम समुझ मौर्य ने किया। विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता जंग हिन्दुस्तानी ने कहा कि जंगलों के अंदर रहने वाले वन निवासियों के मानवाधिकार हनन की घटनाओं में पर्याप्त कमी आई है लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। अभी भी लोगों के मानवाधिकार को प्रभावित करने वाले तत्व मौजूद हैं। जिनसे न सिर्फ मानवाधिकार अपितु वन, वनसम्पदा और वन्यजीवों के जीवन को भी खतरा है। इस विषय पर जनजागरूकता की आवश्यकता है। बैठक को सम्बोधित करते हुए वन अधिकार आंदोलन के अध्यक्ष शंकर सिंह ने कहा कि मुर्तिहा छावनी के वन निर्भर समुदाय को अतिक्रमणकारी बताते हुए उन्हें उनके कब्जे की भूमि से बेदखल करने की साजिश रची जा रही है। उनके घरों के सामने दीवार खड़ी कर दी गई है जो कि वन अधिकार कानून के उल्लंघन के साथ साथ मानवाधिकारों का भी हनन है। जिले के उच्च अधिकारियों को इस विषय का स्वतः संज्ञान लेते हुए दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करना चाहिए। वन अधिकार आंदोलन के महासचिव सरोज कुमार ने कहा कि वन अधिकार कानून लागू होने के बाद उसका सही तरीके से क्रियान्वित न किया जाना भी मानवाधिकारों का हनन है। लोगों के दावों को विभिन्न बहाने से खारिज किया जा रहा है। समाजसेवी फरीद अंसारी ने कहा कि लोगों को अभी भी मानवाधिकारों का सम्पूर्ण ज्ञान नहीं है जिसके लिए कार्यक्रम बना कर जन जागरण किया जाना चाहिए। गोष्ठी में फगुनी प्रसाद, सूर्य देव, केशव सिंह, विन्दा देवी, समीउददीन खान‘‘सोनू, नंद किशोर आदि ने अपने-अपने विचार रखे।