व्याकरणाचार्य और भाषाविज्ञानी अपने मार्ग से भटक गये हैं– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

 प्रयागराज।शासकीय महाविद्यालय, जयसिंहनगर, शहडोल की ओर से आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के दूसरे और अन्तिम दिन प्रयागराज से पधारे, समारोह के अध्यक्ष भाषाविज्ञानी और समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने ८ दिसम्बर को अपनी राष्ट्रीय पाठशाला के अन्तर्गत अध्यापक-अध्यापिकाएँ तथा छात्र-छात्राओं को व्याकरण और भाषाविज्ञान मे अन्तर सुस्पष्ट करते हुए कहा, ”आज भाषाविज्ञानी और व्याकरणाचार्य अपने लक्ष्य से भटक गये हैं। उन्हें शैक्षणिक संस्थानो मे जाकर  विद्यार्थियों का व्यावहारिक मार्गदर्शन करना चाहिए, जबकि वे केवल अपने लिए जीवन जीते आ रहे हैं। यही कारण है कि हमारे विद्यार्थी अपने मूल मार्ग से भटकते जा रहे हैं। आचार्य ने आगे कहा, “साहित्य-साहित्यकारों पर शोध कराया जाता है; परन्तु व्याकरण के सर्वांग अथवा अंग-उपांगों पर नहीं; व्याकरण की ऐसी उपेक्षा और अवहेलना क्यों? ये सभी विषय शोचनीय बन चुके हैं।” अपने इस विचारोत्तेजक उद्बोधन के पश्चात् आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कर्मशाला के अन्तिम दिन शताधिक शब्दप्रयोग की शुद्धता और अशुद्धता पर सकारण प्रकाश डाला, जिनमे आयु-अवस्था, पश्चात्ताप-प्रायश्चित्त, आवास, प्रवास, निवास, आप्रवास, अवसाद, अपवाद, विद्वान्-विदुषी, विद्वत्ता, मिष्टान्न, स्वागत-अभिनन्दन, आरम्भ, प्रारम्भ, समारम्भ, आभार, कृतज्ञता, धन्यवाद, अन्तर्राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय, पूर्वग्रह-पूर्वाग्रह, कैलास, निर्माण, सर्जन, रचना, और, व, एवं, तथा,  आवागमन-गमनागमन, आरोपी-आरोपित, उज्ज्वल, प्रज्वल, मिष्ठान्न-मिष्ठान-मिष्टान्न, इतिहास, विश्वास-आत्मविश्वास, अल्ला-अल्लाह आदिक के व्याकरण-पक्ष को समझाते-लिखाते हुए बोध कराया था। अध्यापक-अध्यापिकाओ तथा छात्र-छात्राओं का उत्साह देखते ही बन रहा था। वे सभी बढ़-चढ़कर प्रश्न और प्रतिप्रश्न करते हुए दिख रहे थे।आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला से पूर्व ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय, रीवा मे समाजशास्त्र के प्राध्यापक डॉ० महेश शुक्ल, पं० शम्भुनाथ विश्वविद्यालय मे हिन्दी-विभागाध्यक्ष डॉ० नीलमणि दुबे ने समाज और साहित्य विषय पर बहुविध व्याख्यान किये थे।