घर और मंदिर में फर्क होता है और जो लोग घर में ही मंदिर बना लेते हैं उनके लिए कई नियम मान्य होते हैं जैसे कहां बनाना चाहिए, घर का कौन सा कोना पवित्र है वगैराह-वगैराह, लेकिन घर में मूर्तियां रखने के भी कुछ नियम होते हैं। शास्त्रों के अनुसार अगर मूर्ति की पूजा नहीं की जा सकती तो उसे घर में रखने की जरूरत नहीं है। ये नियम खास तौर से शिवलिंग पर लागू होता है।शिवलिंग को लेकर ये भी नियम है कि एक से ज्यादा शिवलिंग घर में नहीं रखने चाहिए।अगर ब्रह्मा-विष्णु-महेश की मूर्ति रखी जा रही है या फोटो है तो उसे बाकी देवताओं से ऊपर स्थान देना चाहिए।
एक ही भगवान की तीन मूर्तियां या तस्वीरें एक साथ घर में नहीं रखनी चाहिए ये गलत प्रभाव डालती हैं।
क्या कहते हैं शास्त्र..
ये सभी नियम और कायदे खास तौर पर वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाए गए हैं। अगर हम अन्य शास्त्रों की बात करें जैसे गीता में दान या उपहार के तीन प्रकार हैं (सात्विक, राजसिक और तामसिक) जिसमें से किसी में भी भगवान की मूर्ति दान या उपहार देने का कोई रिवाज नहीं है।
रिगवेद में ज्ञान को ही दान और उपहार माना गया है और इसे ही देने की बात कही गई है। मनुस्मृति में भूखे को खाना खिलाना (पुण्य के लिए), सरसों का दान (स्वास्थ्य के लिए), दिए या रौशनी का दान (समृद्धी के लिए), भूमि का दान (भूमि के लिए) और चांदी का दान (सौंदर्य के लिए) का वर्णन है, लेकिन भगवान की मूर्तियों का कहीं नहीं हैं।