जौनपुर। कार्तिक पूर्णिमा पर ऐतिहासिक सूरज घाट, राजेपुर त्रिमुहानी, पिलकिछा सहित जनपद के सभी नदी के घाटों सहित अन्य जलाशयों पर लाखों लोगों ने डुबकी लगायी। साथ ही भगवान सूर्य की आराधना करके परिवार के सुख-समृद्धि की कामना किया। इस अवसर पर घाटों के अलावा राजा साहब के पोखरे पर मेला लगा जहां अभिभावकों ने लाई, चूड़ा, गट्टा, कृषि, गृहस्थी सहित अन्य सामानों की खरीददारी की तो बच्चों ने जलेबी, पकौड़ी, चाट का स्वाद लिया। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन सभी नदियां गंगा के समान हो जाती हैं, इसलिये इस दिन सभी लोग नदी में स्नान करके भगवान सूर्य सहित अपने ईष्टदेव की आराधना करते हैं। साथ ही सामथ्र्य के अनुसार दीन-दुखियों को दान-पुण्य करते हैं।वहीं यह भी मान्यता है कि आज के दिन नदी में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और घर में सुख-समृद्धि आती है। देखा गया कि जिला मुख्यालय से सटे सूरज घाट पर लाखों लोगों ने गोमती नदी में स्नान कर ऐतिहासिक मेला का हिस्सा बने, वहीं राजेपुर त्रिमुहानी व पिलकिछा घाट पर स्नान करके लोग पुण्य के भागी बने। इसके अलावा जनपद के अन्य नदियों के घाटों सहित जलाशयों पर लोगों ने स्नान करके भगवान की पूजा करते हुये परिवार के सुख-समृद्धि के लिये ईश्वर से कामना किया।
ज्ञात हो कि राजेपुर त्रिमुहानी सई-गोमती संगम स्थल, रामाकाल में महामुनि अष्टावक्र की तपोस्थली रही है। बताया गया है कि राजेपुर घाट स्थित रामेश्वर मंदिर के पास महामनि अष्टा वक्र शिक्षा देते थे। दूर -दराज और नदी के तीनों पार के छात्र यहां आकर शिक्षा ग्रहण करते थे। उसी समय का यह शिव लिगं है। यह शिव लिग भूगर्भ मंदिर के सतह से करीब 12 फिट नीचे है। भक्त जन सीढ़ी से नीचे उतरकर बाबा भोले शंकर का दर्शन-पूजन करते हैं। इस स्थान का उल्लेख श्री रामचरितमानस के इस चैपाई से मिलता है- सई उतर गोमती नहाए, चैथे दिवस अवधपुर को आए। यह वर्णन उस समय का है जब भरत, भगवान राम को वन से वापस अयोध्या लाने विफल रहे और चित्रकूट स्थित पर्णकुटी आश्रम से निराश मन भगवान राम का खड़ाऊ ले वापस लौटे थे। यहां पर सई उतर कर गोमती में स्नान किया और एक रात यहां विश्वाम करने के बाद अगले दिन अयोध्या पहुंच गए।