फतेहपुर। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जगत के पालनहार भगवान विष्णु चार मास की निद्रा से जागकर स्वयं की शक्तियों को जगाने की मान्यता को दृष्टिगत रखते हुए हिन्दू धर्म की महिलाओं ने उपवास रखकर पूरा दिन भगवान की पूजा-अर्चना कर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना किया। वहीं शाम पहर वर्तमान समय में तैयार होने वाली नई फसलों जैसे सिंघाड़ा, गन्ना, नया गुड़, नये चावल के लड्डू बनाकर विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना की। शहर के प्रत्येक चैराहे पर गन्ने की दुकाने लगी रहीं। जिसमें पूरा दिन लोग खरीददारी करते दिखे। गन्ना इस बार दस रूपये से लेकर पच्चीस रूपये पीस तक बिका। महिलाओं ने पूजा-अर्चना के पूर्व परिवार में सुख-समृद्धि आवे एवं दरिद्रता जावें की सोच को कायम करते हुए सोलह श्रृंगार भी किया। ग्रंथों के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि इस दिन पूजा-अर्चना करने से घर में व्याप्त क्लेश, दरिद्रता आदि का नाश होता है। बताया जाता है कि महिलायें इस दिन श्रद्धापूर्वक नई फसलों से भगवान का भोग लगाने के पश्चात् भगवान विष्णु एवं माॅ लक्ष्मी के प्रवेश के लिए चावल से बने आइपन से सीढ़ियाॅ बनाती है जो पूजा-स्थल से लेकर घर में स्थापित भंडार गृह तक जाती है। माना जाता है कि भगवान इसी रास्ते से भंडार गृह में जाते है और धन धान्य से परिपूर्ण करते है। वहीं कल भोर पहर सूप पीटकर लक्ष्मी आवें, दरिद्रता जावे का जापकर परिवार में व्याप्त क्लेश, दरिद्रता आदि को समाप्त करने की ईश्वर से प्रार्थना करतीं है। पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि चतुर्मास के दिनों में एक ही जगह रुकना जरूरी है। जैसा कि साधु संन्यासी इन दिनों किसी एक नगर या बस्ती में ठहरकर धर्म प्रचार का काम करते हैं। देवोत्थान एकादशी को यह चतुर्मास पूरा होता है और पौराणिक व्याख्यान के अनुसार इस दिन देवता भी जाग उठते हैं। माना जाता है कि देवशयनी एकादशी के दिन सभी देवता और उनके अधिपति विष्णु सो जाते हैं। फिर चार माह बाद देवोत्थान एकादशी को जागते हैं। देवताओं का शयनकाल मानकर ही इन चार महीनों में कोई विवाह, नया निर्माण या कारोबार आदि बड़ा शुभ कार्य आरंभ नहीं होता। इस प्रतीक को चुनौती देते या उपहास उड़ाते हुए युक्ति और तर्क पर निर्भर रहने वाले लोग कह उठते हैं कि देवता भी कभी सोते हैं क्या। श्रद्धालु जनों के मन में भी यह सवाल उठता होगा कि देवता भी क्या सचमुच सोते हैं और उन्हें जगाने के लिए उत्सव आयोजन करने होते हैं। वे एकादशी के दिन सुबह तड़के ही विष्णु औए उनके सहयोगी देवताओं का पूजन करने के बाद शंख-घंटा घड़ियाल बजाने लगते हैं। पारंपरिक आरती और कीर्तन के साथ वे गाने लगते हैं। ‘‘उठो देवा, बैठो देवा, अंगुरिया चटकाओं देवा’’ देवताओं को जगाने, उन्हें अंगुरिया चटखाने और अंगड़ाई लेकर जाग उठने का आह्वान करने के उपचार में भी संदेश छुपा है। विद्वानों के अनुसार चार महीने तक देवताओं के सोने और इनके जागने पर कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी पर उनके जागने का प्रतीकात्मक है। प्रतीक वर्षा के दिनों में सूर्य की स्थिति और ऋतु प्रभाव बताने, उस प्रभाव से अपना सामंजस्य बिठाने का संदेश देते हैं। वैदिक वांग्मय के अनुसार सूर्य सबसे बड़े देवता हैं। उन्हें जगत् की आत्मा भी कहा गया है। हरि, विष्णु, इंद्र आदि नाम सूर्य के पर्याय हैं। वर्षा काल में अधिकांश समय सूर्य देवता बादलों में छिपे रहते हैं। इसलिए ऋषि ने गाया है कि वर्षा के चार महीनों में हरि सो जाते हैं। फिर जब वर्षा काल समाप्त हो जाता है तो वे जाग उठते हैं या अपने भीतर उन्हें जगाना होता है। बात सिर्फ सूर्य या विष्णु के सो जाने और उस अवधि में आहार-विहार के मामले में खास सावधानी रखने तक ही सीमित नहीं है। इस अनुशासन का उद्देश्य वर्षा के दिनों में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों उनके कारण प्रायः फैलने वाली मौसमी बीमारियों और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ने वाले उसके प्रभाव के कारण अक्सर गड़बड़ाता रहता है।
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