बाँदा।भूख नहीं लगती थी। पूरे बदन में दर्द और थकान महसूस होती थी। घर वालों को जब यह बात बताई तो उन्होंने गर्भवास्था में यह सब होना सामान्य बताया। कमासिन ब्लाक के एक गांव की रहने वाली 26 वर्षीया रिंकी (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि तीसरे माह में प्रसव पूर्व जांच के लिए वह अस्पताल गईं। जांच में उन्हें फेफड़े में टीबी होने का पता चला। टीबी से बच्चे पर कोई असर न हो यह सोचकर वह बेहद परेशान हो गईं। डाक्टर ने नियमित दवा के साथ ब्रोकली, गाजर, टमाटर, शकरकंद, हरी सब्जियां और सेब, संतरा, नींबू, आम इत्यादि फल खाने की सलाह दी। चार महीने इलाज के बाद उन्होंने फिर जांच कराई तो उसमें टीबी की रिपोर्ट निगेटिव आई। डाक्टर की सलाह पर छह माह तक दवा का सेवन किया। इसी बीच गर्भ के नौ माह पूरे होते ही उनका सामान्य प्रसव हुआ। बच्चा पूरी तरह स्वस्थ है।जिला क्षय रोग अधिकारी डा. संजय कुमार शैवाल बताते हैं कि टीबी एक गंभीर बीमारी है और कोई भी इसकी चपेट आ सकता है। गर्भवती पर भी यही बात लागू होती है। गर्भवती को सुरक्षित तरीके से दवाएं देकर टीबी से बचाया जा सकता है। सामान्य तौर टीबी का इलाज छह महीनों तक चलता है। यह बहुत जरूरी है कि दवा का पूरा कोर्स किया जाए। टीबी का इलाज बीच में छोड़नेसे अधूरा रह जाता है और इसके दोबारा होने की आशंका बनी रहती है। घर के अन्य सदस्यों को भी यह बीमारी हो सकती है। इसमें नए जन्मे शिशु भी शामिल हैं। यदि गर्भावस्था में मां को सही उपचार मिले तो बच्चा स्वस्थ पैदा होता है। जिला कार्यक्रम समन्वयक प्रदीप वर्मा ने बताया कि जनवरी से अब तक 155 महिलाएं टीबी रोग से ग्रसित पाई गई हैं। इनमें21 से 35 आयुवर्ग की सबसे ज्यादा महिलाएं हैं। 62 गर्भवती इनमें शामिल हैं।
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