बाँदा।दीपावली के दूसरे दिन परीवा को बुंदेलखंड की परंपरागत मशहूर लोकविधा दिवारी नृत्य की धूम रही।बांदा में दीपावली के दूसरे दिन परीवा को बुंदेलखंड की परंपरागत मशहूर लोकविधा दिवारी नृत्य की धूम रही। एक-दूसरे पर लाठियां बरसाते और बचाव करते हैरतअंगेज कारनामे देखने को दर्शकों का हुजूम उमड़ पड़ा।रंग- बिरंगी पोशाक वालों का डंडा नृत्य और मोर पंख धारक मौनियों का नृत्य आकर्षण का केंद्र रहा।यमुना घाटों, देवालयों समेत गांव-गांव दीवारी नृत्य का प्रदर्शन हुआ।दिवारी खेलने वालों के साथ मौन चराने वाले मौनिया मोर पंख लिए उछल-कूद मचाते रहे। मुख्यालय स्थित महेश्वरी देवी मंदिर के सामने सुबह से देर शाम तक दिवारी और पाई डंडा नृत्य की धूम रही। दर्जनों गांवों की टीमों ने देवी दरबार में मत्था टेककर दिवारी खेली।ढोल- नगाड़ा की धुनों ने उन्हें और जोशीला बना दिया।अतर्रा के गौरा बाबा धाम में क्षेत्रीय गांवों की दिवारी टीमों का जमघट लगा।खप्टिहा के कालेश्वर मंदिर में भी दिवारी नृत्य की धूम रही।ग्राम पंचायत अमलोखर में दिवारी खेलते हुए गांव के आसपास 12 गांव में भ्रमण किया गया। सैकड़ों की संख्या में दर्शक मौजूद रहे।यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। बुंदेलखंड की मैसूर दिवारी में ढोल नगाड़े बजाते,गाते-नाचते हुए दृश्य दिखाई दिए।लाठी-डंडों से कई प्रकार की कला दिखाई गई। दर्शक ऐसा दृश्य देखकर आनंदित हो उठे।चट-चटाचट चटकती लाठियों के बीच दीवारी गायक जोर-जोर से दीवारी गीत गाते हैं। ढ़ोल बजाकर वीर रस से युक्त ओजपूर्ण नृत्य का प्रदर्शन करते हैं। नृत्य में धोखा होने से कई बार लोग चुटहिल भी हो जाते हैं, लेकिन परम्पराओं से बंधे ये लोग इसका कतई बुरा नहीं मानते।इन्हीं अनूठी परम्पराओं के चलते बुन्देलखण्ड की दीवारी की पूरे देश में विशिष्ट स्थान व अनूठी पहचान है।
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