करूणा व चमत्कारिक गुणों की खान थे बाबा कीनाराम

चहनियां। बाबा कीनाराम का 523वां जन्मोत्सव समारोह आगामी 25 अगस्त से 27 अगस्त तक चलेगा। ऐसे में बाबा कीनाराम के गुणों व उनके महात्म्य की चर्चा होना लाजिमी है। मान्यता के अनुसार कीनाराम बाबा का जन्म सन् 1601 में भाद्रपद माह के अघोर चतुर्दशी को उत्तर प्रदेश के चंदौली जनपद के रामगढ़ नामक ग्राम में एक कुलीन क्षत्रिय परिवार में हुआ था। बचपन से ही वे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। खाली समय में वे अपने मित्रों के साथ रामधुन गाते थे। बारह वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह कर दिया गया और तीन वर्ष बाद गौना निश्चित हुआ। गौने की पूर्वसंध्या पर इन्होंने अपनी माँ से दूध-भात खाने के लिए मांगा। उस समय दूध भात खाना अशुभ माना जाता था। जोकि मृतक संस्कार के बाद खाया जाता था। माँ के मना करने के बाद भी उन्होंने हठ करके दूध भात खाया। अगले दिन उनकी पत्नी की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ। समाचार से पता चला कि उनकी पत्नी की मृत्यु एक दिन पूर्व सायंकाल में ही हो चुकी थी। पूरा गांव आश्चर्यचकित था कि घर पर बैठे बैठे कीनाराम को पत्नी की मृत्यु की जानकारी कैसे हो गयी।कुछ समय बाद घरवाले फिर से विवाह के लिए दबाव डालने लगे। जिससे परेशान होकर बाबा कीनाराम ने घर छोड़ दिया। घर छोड़ने के बाद वे घूमते हुए गाजीपुर जिले के कारों ग्राम जोकि अब बलिया जिले में है, वहां पहुंचे। वहां रामानुजी परंपरा के संत शिवराम की बड़ी प्रसिद्धि थी। कीनाराम जी उनकी सेवा में जुट गए और उनसे दीक्षा देने की प्रार्थना की। एक दिन शिवराम जी ने इन्हें पूजा सामग्री लेकर गंगातट पर चलने को कहा। कीनाराम जी सामग्री लेकर गंगातट से थोड़ी दूर बैठ गए। थोड़ी देर में गंगा का जल बढ़कर उनके पैरों तक पहुंच गया। यह चमत्कार देखकर शिवरामजी ने इनको दीक्षा दी दी। बाबा ने कुछ समय वहां रहकर के साधनाएं कीं। पत्नी की मृत्यु के बाद जब संत शिवराम ने पुनर्विवाह किया तो बाबा कीनाराम ने उन्हें छोड़ दिया। भ्रमण करते हुए बाबा नईडीह नामक गांव में पहुंचे। वहां एक बुढ़िया के लड़के को लगान न दे पाने के कारण जमींदार के आदमी पकड़ ले गए थे। लाचार वृद्धा का दुख बाबा से देखा नहीं गया। वे उसके लड़के को छुड़ाने जमींदार के पास पहुंच गए। जमींदार ने कहा कि मेरा लगान दे दीजिए, लड़का ले जाइए। बाबा बोले, “जहां लड़का बैठा है, उसके नीचे खोदो। तुम्हें तुम्हारे लगान से कई गुना अधिक धन मिल जाएगा। सचमुच वहां सोने की अशर्फियों का ढेर निकला। जमींदार बाबा के चरणों में नतमस्तक हो गया। लड़के को छोड़ दिया गया। बुढ़िया ने अपने लड़के को बाबा की सेवा में सौंप दिया। वही लड़का आगे चलकर बाबा बीजाराम के नाम से प्रसिद्ध हुआ और बाबा का उत्तराधिकारी बना। वहां से आगे बढ़ते हुए बाबा गिरनार पर्वत पर पहुंचे। जो औघडपंथी संतों की पुण्य तपोभूमि मानी जाती है। यहीं साक्षात शिव के अवतार महागुरु दत्तात्रेय जी ने बाबा को दर्शन दिए। इससे पूर्व दत्तात्रेय जी ने गुरु गोरखनाथ को भी यहीं दर्शन दिए थे। वहीं मठ परिसर में स्थित रामसागर कूप का निर्माण कराया। जिसके चार घाट है और चार तरह के जल है। ऐसा मानना है कि कुएं में कूदकर वे वाराणसी के अस्सी घाट स्थित क्री कुंड में निकले। जिससे उक्त स्थल का महात्म्य भी लोगों के लिए श्रद्धा का विषय है।