जौनपुर। हिंदुओं की आस्था का प्रतीक पर ललही छठ जनपद में धूमधाम से मनाया जाता है। ललही छठ का पर्व सावन माह बीतने के उपरांत मनाया जाता है। इस पर्व पर माता अपने पुत्र पति व अपने परिवार की सुख समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रहती हैं। ललही छठ का पर्व महिलाओं द्वारा हर्षाेल्लास पूर्वक मनाया जाता है। बुधवार को यहां महिलाओं द्वारा एक जगह एकत्रित होकर ललही माता की प्रतीकात्मक मूर्ति बनाकर उनकी पूजा अर्चना किया । इस पूजा की मान्यता नदी किनारे जाकर करने की है लेकिन समय के अनुसार लोग अपने घरों के आसपास तालाब आदि मंदिरों पर जाकर इस पर्व को मनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जिन महिलाओं के बेटे हैं वही यह व्रत करती हैं। इस पूजा को करने से जिन महिलाओं के पुत्र नहीं है कोई संतान नहीं है उन्हें इस पूजा का फल प्राप्त होता है उन्हें संतान की प्राप्ति भी होती है । नगर के रूहट्टा मोहल्ले में विधि-विधान पूर्वक ललही छठ माता की पूजा की गई। इस दौरान भारी संख्या में महिलाएं उपस्थित रही सुबह से ही पूजा करने के लिए महिलाएं अरघा के पास एकत्रित हो गई। इस पूजा में खासतौर से जहां एक तरफ अक्सर पूजा में गाय माता की तमाम चीजें चढ़ाई जाती हैं वहीं इस पूजा में सिर्फ भैंस के दूध दही गोबर घी का प्रयोग किया जाता है व्रती महिलाएं टिन्नी का चावल महुआ व करेमुआ का साग खाकर व्रत का पारण करती हैं। इस पौराणिक कथा के बारे में बताते हुए पूजा संपन्न कराने वाली शशि कला श्रीवास्तव ने बताया कि आज के दिन महत्वपूर्ण पूजा की जाती है औरतें अपने पुत्रों पति की लंबी आयु आरोग्यता व परिवार के सुख संपदा के लिए व्रत करती हैं। इस दिन महिलाएं कहीं खेत में नहीं जा सकती हैं। इस पूजा में प्रसाद के रूप में टिन्नी का चावल महुआ दूध जी दही का खास प्रयोग किया जाता है अरे पर कुश के पौधे को लगाकर उस में गांठ बांधकर मन्नते मांगी जाती हैं। जहां तक भैंस के सामानों का इस पूजन में इस्तेमाल किया जाता है उसके बारे में मान्यता है कि प्राचीन काम मे एक बड़े राजा थे जिनकी कोई संतान नहीं थी और वह काफी दुखी था। एक दिन उसकी एक भैंस तालाब किनारे स्नान कर रही थी जहां ललही छठ माता की पूजा की जा रही थी ।नहाते समय उसने सुनना की इसका चावल ग्रहण करने से लोगों को संतान उत्पन्न होती है भैंस ने ढेर सारा चावल अपने कान में भरकर राजा को लाकर कर दिया और बताया कि इसको खाने से रानी गर्भवती होंगी जिससे कि आपकी आगे कुल चल सकेगा जिसके परिणाम स्वरूप रानी को संतान प्राप्त हुई । इसलिए इस पूजा में भैंस के सामानों का ज्यादा प्रयोग किया जाता है।
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