द हेग। संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च अदालत यह व्यवस्था देगी कि क्या म्यांमा के शासकों पर मुख्य रूप से रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार के आरोप वाले एक ऐतिहासिक मामले की सुनवाई आगे बढ़ाई जाए या नहीं। इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) म्यांमा के उन दावों पर अपना निर्णय देने को तैयार है कि हेग स्थित अदालत का सुनवाई का अधिकार क्षेत्र नहीं है और 2019 में छोटे अफ्रीकी राष्ट्र गाम्बिया की ओर से दर्ज कराया गया मामला सुनवाई योग्य नहीं है। यदि आईसीजे के न्यायाधीश म्यांमा की आपत्तियों को खारिज करते हैं, तो वे रोहिंग्या अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचारों के सिलसिले में अदालती सुनवाई शुरू की जाएगी। मानवाधिकार समूह और संयुक्त राष्ट्र की जांच में इस नरसंहार को 1948 की संधि का उल्लंघन करार दिया जा चुका है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने मार्च में कहा था कि म्यांमा में रोहिंग्या मुसलमानों का हिंसक दमन नरसंहार के बराबर है।रोहिंग्या के साथ किये जाने वाले कथित दुर्व्यवहार को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्पन्न आक्रोश के बीच, गाम्बिया ने विश्व अदालत में मामला दायर कर आरोप लगाया कि म्यांमा नरसंहार संधि का उल्लंघन कर रहा है। इसकी दलील है कि गाम्बिया और म्यांमार दोनों ही संधि के पक्षकार हैं और सभी हस्ताक्षरकर्ताओं का यह कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करें कि इसे लागू किया जाए। म्यांमार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने फरवरी में तर्क दिया था कि इस मामले को खारिज कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि विश्व अदालत केवल देशों के बीच के मामलों की सुनवाई करती है, जबकि रोहिंग्या का मामला इस्लामिक सहयोग संगठन की ओर से गाम्बिया ने दायर किया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि गाम्बिया इस मामले में अदालत नहीं जा सकता क्योंकि यह सीधे तौर पर म्यांमा की घटनाओं से जुड़ा नहीं था और मामला दायर होने से पहले दोनों देशों के बीच कोई कानूनी विवाद भी नहीं था।
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