साबुन से सिगरेट तक बनाने वाली कंपनी आईटीसी ने 60 दृष्टिहीनों पर खेला दांव, दिया सूंघने का कार्य

नई दिल्ली। कहा जाता है जिन लोगों का कोई इंद्री काम नहीं करती उन लोगों की अन्य इंद्री कुछ ज्यादा सक्रिय होती है इसी ईश्वरीय देन के मद्देनजर साबुन से सिगरेट तक बनाने वाली कंपनी आईटीसी ने करीब 60 दृष्टिहीन लोगों पर दांव खेला और इनको भर्ती किया है और उन्हें फ्रेगरेंस बेचने का काम सौंपा है। इससे कंपनी इन दृष्टिहीन लोगों की जिंदगी तो बदल ही रही है, साथ ही अपने प्रोडक्ट को एक अलग तरीके से लोगों के बीच में पेश कर रही है।इस वक्त भारतीय फ्रेगरेंस मार्केट में ऐसे लोगों की तगड़ी डिमांड है जिनकी सूंघने की शक्ति बहुत अधिक हो। जो लोग देख नहीं सकते, उनकी सूंघने की ताकत आम आदमी से अधिक होती है। आप कभी खुद ही गौर कीजिएगा कि जब कभी आप किसी चीज की खुशबू को दिल से महसूस करना चाहते हैं तो आंख बंद कर के सूंघना पसंद करते हैं। यहां तक कि अगर आप कुछ ध्यान से सुनना चाहें तो भी आप आंखें बंद कर लेते हैं। तो जरा सोचिए, जो देख ही नहीं सकते, उनके लिए सूंघ कर चीजें पहचानना कितना आसान होगा। देखा जाए तो वह किसी चीज को सूंघकर पहचानने में नेचुरली ट्रेंड लोग हैं।चेन्नई की लोकल ट्रेनों में 39 साल के नरसिम्मन नाम के एक दिव्यांग अक्सर दिखते थे, जो दृष्टिहीन हैं। वह ट्रेन में बच्चों के खिलौने, फोन के कवर, कार्ड पाउच, ईयरफोन और चार्जिंग केबल जैसी चीजें बेचते थे। अब उन्हें आईटीसी ने नौकरी पर रख लिया है। उनकी भर्ती आईटीसी के ब्रांड मंगलदीप के लिए की गई है। अब वह मंगलदीप छठी इंद्री का हिस्सा हैं। नरसिम्मन उन 60 दृष्टिहीन लोगों में से एक हैं, जिन्हें कंपनी ने नौकरी पर रखा है।आईटीसी के एक वरिष्ठ कार्यकारी ने कहा है कि कंपनी इन दृष्टिहीन लोगों की सूंघने की क्षमता बढ़ाने पर उन्हें ट्रेनिंग दे रही है और साथ ही उन्हें सर्टिफिकेट भी दे रही है। इन सर्टिफिकेट की मदद से यह लोग फ्रेगरेंस के फील्ड में काम करने वाली अन्य कंपनियों में भी अपनी सेवाएं दे सकेंगे। फ्लेवर और फ्रेगरेंस में डील करने वाली एक कंपनी के मालिक मनोज अरोरा कहते हैं कि भारत में नेचुरल इसेंशियल ऑयल और एरोमा का भंडार है। यहां तक कि इसेंशियल ऑयल मार्केट को अभी तक किसी ने पकड़ा भी नहीं है। कंपनी ने नोएडा में एक नई फैसिलिटी बनाने में करीब 300 करोड़ रुपये का निवेश किया है।