बांदा।गुरूर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुरू गुरुदेव महेश्वरः,गुरु साक्षात परम ब्रह्म तस्मै श्रीगुुरवे नमः।इंटरनेट के इस युग में जीवन के मूल्यों में बड़ा परिवर्तन हुआ है, लेकिन यह गुरु-शिष्य परम्परा ही है जो प्राचीन काल से ज्यों कि त्यों चली आ रही है। गुरुपूर्णिमा का दिन अपने गुरुजनों के प्रति आदर प्रदर्शित करने का है। इसलिये मंगलवार को लोगों ने सामथ्यार्नुसार भेंट देकर अपने गुरुजनों के प्रति अपने तरीके से सम्मान प्रदर्शित किया।उमाकांत जी ने कहा कि एक शिष्य के लिये गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा होता है। इसीलिये कबीरदास लिखते हैं ‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय’। बताया कि गुरु की प्रतिमा यदि पत्थर अथवा मिट्टी की स्थापित करके भी कोई शिष्य ज्ञान की प्राप्ति करना चाहता है तो वह भी संभव है। इतिहास गवाह है कि द्वापर में अर्जुन जैसा धनुर्धर संपूर्ण संसार में नहीं था, लेकिन एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य को मन से गुरु मानकर उनकी प्रतिमा स्थापित की और उनकी प्रेरणा से धनुर्विद्या का अभ्यास प्रारंभ किया।गुरु की कृपा से उसने यह सिद्ध कर दिखाया कि वह अर्जुन से भी ज्यादा धनुर्विद्या में प्रवीण हुए। इसी तरह गुरु पूर्णिमा के अवसर पर शहर के विद्यालयों में भी विभिन्न आयोजन किए गए और गुरु की महिमा का बखान किया गया।
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