चित्रकूट। चार सौ वर्ष पुरानी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा परंपरानुसार धूमधाम से निकाली गई। रथ को श्रद्धालुओ ने भक्तिभाव मे सराबोर होकर धकेलते हुए चल रहे थे। इस दौरान घंटे घडियाल, वेददध्वनि के बीच जय जगन्नाथ के जयकारे गूंजते रहे। शुक्रवार को मुख्यालय के जयदेवदास अखाड़ा से अषाढ़ मास की दूज को काष्ठ के सुसज्जित रथ में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा के साथ विराजमान होकर निकले। रथ यात्रा के प्रथम दिवस अखाड़े के संत-महंत व संस्कृत विद्यालय के दर्जनो छात्र वेददध्वनि का पाठ करते हुए रथ को धकेलते हुए जैसे ही अखाड़े से निकली तो श्रद्धालुओं का हुजूम दर्शन को उमड़ पड़ा। लोगों ने बेसन के बने लच्छेदार व सोन पापड़ी, बताशे आदि का भोग लगाकर पुण्र्याजन किया। रथ को लोग भक्तिभाव से खींचते हुए आगे की ओर बढ़ाया। परंपरागत तरीके से रथ यात्रा का पड़ाव कच्ची छावनी में डाला गया। इसी प्रकार दूसरा पड़ाव सदर बाजार और तीसरा पड़ाव सोनेपुर में होगा। अगले दिन विशाल मेले का आयोजन होगाा। इस प्रकार ढाई कोस की यात्रा नौ दिन में पूरी की जाएगी। सोनेपुर में पड़ाव में मां जानकी पहुंचकर भगवान जगन्नाथ के बने चूल्हे व भोजन स्थल को नष्ट कर वापस ले जाने को तैयार हुई। फिर पुनः रथ यात्रा अखाड़ा पहुंचेगी। पहले दिन लच्छेदार सोन पापडी, गुब्बारे, फिरंगी आदि की दुकाने लोगों को आकर्षित करती रहीं। लोगों ने जमकर खरीददारी की। रथ यात्रा में पुजारी रमाशंकर दास, आचार्य अंबिका प्रसाद द्विवेदी, राजकुमार, रामयश ओझा, कमलाकांत रावत, शंकरलाल द्विवेदी, सोनू द्विवेदी आदि दर्जनो श्रद्धालु शामिल हुए।
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