नयी दिल्ली। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाइब्रिड खतरों से निपटने के लिए नागरिक प्रशासन और सशस्त्र सेनाओं के बीच सामंजस्य तथा तालमेल को बेहद जरूरी करार देते हुए कहा है कि इसके बिना एक राष्ट्र के रूप में खतरों और चुनौतियों का जवाब देना मुश्किल है।श्री सिंह ने सोमवार को मंसूरी में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में 28 वें संयुक्त नागरिक-सैन्य प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार पुराने दृष्टिकोण को पीछे छोड़कर नयी दृष्टि से एकीकरण यानी मिलकर काम करने की दिशा में बढ रही है और इसी का परिणाम है कि समाज के हर वर्ग को विकास का लाभ मिल रहा है। उन्होंने कहा , “ एक समग्र दृष्टिकोण के अभाव, और ‘अकेले-अकेले’ काम करने के चलते देश के सभी हिस्सों में विकास समान रूप से नहीं पहुंच पाया। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस तरह के पुराने दृष्टिकोण को हटाकर एक नई दृष्टि के साथ कार्य करने पर जोर दिया। प्रधानमंत्री जी की एप्रोच है, कि ‘अकेले-अकेले’ में काम न करके मिलकर के साथ काम किया जाए। अब हम जिस नए एप्रोच के साथ कार्य कर रहे हैं, उसमें समाज का हर वर्ग विकास की ओर आगे बढ़ रहा है। ”उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में एकीकरण की बात और अधिक प्रासंगिक तथा आवश्यक हो जाती है। साथ ही उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा अब पहले की बहुत अधिक व्यापक हो गयी है। उन्होंने कहा , “सामान्य तौर पर तो इसे सैन्य हमलों से अपनी सुरक्षा से जोड़ा जाता है, पर अब इसमें अनेक असैन्य पहलू भी जुड़ गए हैं। युद्ध और शांति दो अलग स्थिति न होकर अब ‘कन्टिन्यूअम’ यानी एक तरह से ‘मिल’ गये हैं। शांति के दौरान भी अनेक मोर्चों पर युद्ध चलते रहते हैं। इनके बीच की सीमा काफी धुंधली हो गई है। ”रक्षा मंत्री ने कहा कि पिछले कुछ दशकों पर नजर डालें तो पता चलता है कि बड़ी शक्तियों ने भी पूर्ण युद्ध को टालने का काम किया है और इसलिए इसकी जगह छद्म और परोक्ष युद्धों ने ले ली है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय से आर्थिक दबाव को भी को भी सैन्य बल के अलावा एक प्रमुख बल के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने कहा, “ साइबर और सूचना भी इसी तरह की ताकतें हैं, जो खुली आंखों के सामने भी धोखा देने की क्षमता रखती हैं। सेनाओं के आधुनिकीकरण और रक्षा क्षेत्र की आत्मनिर्भरता के लिए जो-जो कदम उठाए गए हैं उनके परिणाम हमारे सामने आने शुरू हो गए हैं। ”श्री सिंह ने कहा कि अभी भारत न केवल अपने लिए सैन्य साजो सामान बना रहा है बल्कि दूसरे देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी उत्पादन बढा रहा है। उन्होंने कहा , “ इसी तरह ग्रे जोन टकराव से निपटने के लिए, और राष्ट्रीय सुरक्षा को और सुदृढ़ करने के लिए भी हम एकीकरण की ओर आगे बढ़ रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में संयुक्त नागरिक- सैन्य कार्यक्रम के महत्व को समझा जा सकता है। अपने अनुभवों और चिंताओं को साझा करते हैं। जब तक हाइब्रिड खतरों से निपटने के लिए नागरिक प्रशासन और सशस्त्र सेनाओं के अकेले अकेले काम करने की व्यवस्था को तोड़ा नहीं जाता है, हम एक राष्ट्र के रूप में खतरों और चुनौतियों का जवाब देने के लिए पर्याप्त तैयारी की उम्मीद नहीं कर सकते हैं । ”रक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया कि इसका मतलब यह नहीं है कि वे एक दूसरे की स्वायत्ता का अतिक्रमण करें। उन्होंने कहा कि इसका अर्थ यह है कि वे आपस में इस तरह घुलें-मिलें, जैसे इंद्रधनुष के रंग मिले रहते हैं। उन्होंने कहा , “यहां जब मैं सिनर्जी या सभी संस्थानों के एक साथ मिलकर आगे बढ़ने की बात कर रहा हूं, तो यह मैं बड़ी सावधानी से कह रहा हूं। संस्थानों के एक साथ मिलने का यह कतई अर्थ न हो कि वह आपस में एक दूसरे के अधिकारों का अतिक्रमण करें। मुझे पूरा विश्वास है, कि हम समन्वय के जिस पथ पर आगे बढ़ रहे हैं, वह न केवल हमारी अपनी समग्र सुरक्षा, बल्कि पूरे विश्व में शांति के एक नए दौर तक पहुँचेगा।”
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