नयी दिल्ली|लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) पर नियंत्रण को लेकर हो रहे प्रयासों के बीच पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने बुधवार को कहा कि पार्टी संविधान के अनुसार उन्हें उनके पद से नहीं हटाया जा सकता।श्री पासवान ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उनके इस्तीफा देने के बाद ही दूसरे नेता को अध्यक्ष बनाया जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पार्टी संसदीय बोर्ड ही संसदीय दल के नेता का चुनाव कर सकता है। पार्टी के सांसद संसदीय दल के नेता का चुनाव नहीं कर सकते हैं ।
श्री पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस लोजपा के छह सांसदों में से चार के समर्थन से संसदीय दल का नेता बन गए हैं और लोकसभा अध्यक्ष ने इसे मंजूरी दे दी है ।
उन्होंने कहा कि उनके पिता राम विलास पासवान ने गरीबों और पिछड़ों की लड़ाई लड़ने के लिए पार्टी इस गठन किया था। उन्होंने कहा कि कल पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गयी थी जिसमें लोजपा को और मजबूत करने का निर्णय किया गया। पार्टी ने श्री पासवान के प्रति विश्वास व्यक्त किया है। बिहार में पार्टी को और मजबूत करने का प्रयास किया जाएगा।श्री पासवान ने कहा कि उन्होंने पार्टी और परिवार को एकजुट रखने का भरपूर प्रयास किया । बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी उनके चाचा ने पूरा साथ नहीं दिया। पिता के निधन के बाद होली के दिन भी परिवार का कोई सदस्य उनके घर नहीं आया। इसके बाद उन्होंने चाचा को एक पत्र भेजा था और कहा था कि यदि कोई मामला है तो मिल बैठ कर उसका निदान कर लें।उन्होंने कहा कि पिछले दिनों वह बीमार हो गये थेए इसी दौरान पार्टी पर नियंत्रण का षड्यंत्र किया गया । उन्होंने कहा कि बिहार में चुनाव को लेकर कोई समस्या थी तो उसे उसी समय उठाया जाना चाहिए था ।इस बीच श्री पासवान ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से श्री पारस को संसदीय दल का प्रमुख बनाने के पार्टी सांसदों के प्रस्ताव को मंजूरी देने के अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने तथा उन्हें संसदीय दल का नेता नियुक्त करने का आग्रह किया है ।श्री पासवान ने श्री बिरला को पत्र लिख कर कहा है कि पार्टी संविधान के अनुसार संसदीय दल के नेता का चुनाव संसदीय बोर्ड करता है। श्री पारस को संसदीय बोर्ड ने नेता नहीं चुना है और पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने उन्हें दल से बाहर कर दिया है ।उल्लेखनीय है कि लोजपा के छह सांसदों में से चार ने श्री पारस को संसदीय दल का नेता बनाने को लेकर श्री बिरला को पत्र लिखा था । बाद में श्री पारस को नेता नियुक्त कर दिया था ।