प्रयागराज | डिजिटल एडिक्शन एंड एडोलसेंट हेल्थ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ वी के मिश्र, महाप्रबंधक, राष्ट्रीय कार्यक्रम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, लखनऊ ने कहा कि किशोरों को आउटडोर गेम्स खेलने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। डिजिटल टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग को रोकने के लिए अभिभावकों द्वारा निरंतर परामर्श देते रहना चाहिए। जिन बच्चों को बचपन में मां-बाप का भरपूर प्यार मिलता है, वह बच्चे भटकते नहीं हैं। डॉ मिश्रा ने कहा कि डिजिटल तकनीक जीवन की अनिवार्य आवश्यकता बन चुकी है जिसे नकारा नहीं जा सकता, किंतु आज महती आवश्यकता इस बात की भी है कि इसका सकारात्मक रूप से उपयोग किया जाए। सोशल मीडिया पर सावधानी बरतने की आवश्यकता है। सोशल मीडिया तो भूले बिसरों को भी मिला देता है। अध्यक्षता करते हुए डॉ मीना दरबारी, सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष, गृह विज्ञान विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज ने किशोरों के विकास में पोषण तत्वों के महत्व को समझाया तथा कुपोषण जनित विभिन्न व्याधियों से बचने के उपायों को रेखांकित किया।मुख्य वक्ता डॉ अंशु, विभागाध्यक्ष, मानव विकास एवं पारिवारिक अध्ययन एथलिंड कॉलेज ऑफ होम साइंस, शुआट्स, प्रयागराज ने कहा कि आज के बच्चे लीक से हटकर कार्य करना चाहते हैं। किशोरवय के बच्चे न तो स्वयं को समझ पाते हैं और न समाज को समझ पाते हैं। जीवन की रफ्तार आज बहुत तेज हो गई है। हम बच्चों के हाथ में गैजेट तो दे रहे हैं लेकिन उसका उपयोग कैसे करें,यह सिखाने वाला कोई नहीं है। डिजिटल एडिक्शन जैसे दुधारी तलवार से बच्चों को बचाने के लिए मॉनिटरिंग बहुत आवश्यक है।विशिष्ट वक्ता डॉ इशान्या राज, नैदानिक मनोवैज्ञानिक, मोतीलाल नेहरू (कॉल्विन) जिला चिकित्सालय, प्रयागराज ने एडिक्शन के विभिन्न प्रकारों के बारे में प्रकाश डाला उन्होंने डिजिटल एडिक्शन से छुटकारा पाने की विभिन्न विधियों से अवगत कराया कहा कि अभिभावकों को अपने बच्चों से निरंतर सकारात्मक संवाद स्थापित रखना चाहिए। उन्होंने समाज के विभिन्न सकारात्मक गतिविधियों में बच्चों को भी सक्रिय रूप से सक्रिय भागीदारी हेतु प्रोत्साहित करने के लिए आह्वान किया। डॉ राज ने कहा कि बच्चों के व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास तभी होगा जब वह सामाजिक गतिविधियों में भाग लेंगे। उन्होंने कहा कि आज का युवा नोमो (नो मोबाइल) फोबिया का शिकार होता जा रहा है। हमें तकनीक से बैलेंस करना सीखना है, क्योंकि इसमें फायदे भी है और नुकसान भी हैं। छोटे-छोटे नियम बनाकर हम डिजिटल एडिक्शन से बच सकते हैं।प्रारंभ में विषय प्रवर्तन राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक तथा स्वास्थ्य विज्ञान विद्या शाखा के निदेशक प्रोफेसर गिरिजा शंकर शुक्ल ने किया। उन्होंने कहा कि डिजिटल एडिक्शन के कारण युवाओं में विवरण की समस्या तथा भूलने की आदत हो गई है। एडिक्शन की क्षतिपूर्ति के लिए हमें एक दूसरे से भावनात्मक रूप से जोड़ना होगा।संगोष्ठी का संचालन डॉ दीप्ति श्रीवास्तव एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर विनोद कुमार गुप्त ने किया। लोकमान्य तिलक शास्त्रार्थ सभागार में हुई इस संगोष्ठी में ऑफलाइन तथा ऑनलाइन 100 से अधिक प्रतिभागी सम्मिलित रहे। संगोष्ठी की सफलता पर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सीमा सिंह ने आयोजन मंडल को बधाई दी।
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