नई दिल्ली । दुष्कर्म के किसी भी केस में सबसे ज्यादा परेशानी का सामना पीड़िता को ही करना पड़ता है। कई बार दुष्कर्म पीड़िताएं विभिन्न कारणों से स्थिति के साथ समझौता कर लेती हैं, लेकिन इस बात को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। हाल ही में एक मामले में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि दुष्कर्म समाज के खिलाफ एक अपराध है। ऐसे में समझौते के आधार पर इसे खत्म नहीं किया जा सकता है। पीड़िता से मिली एनओसी के बावजूद हाईकोर्ट ने दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया। एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस रजनीश भटनागर ने कहा कि यदि शिकायतकर्ता बाद में किसी कारण से मुकर जाती है तो इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं है कि अपराध खत्म हो गया या अपराध हुआ ही नहीं। दुष्कर्म समाज और पीड़िता दोनों के प्रति एक जघन्य अपराध है। यह ऐसा अपराध है जो पीड़िता के व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचाता है। इस तरह के अपराध युवती के मन और शरीर दोनों को जख्मी करते हैं। हाईकोर्ट ने कहा यदि इस तरह के केस में समझौता होता है तो इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि अपराध की गंभीरता खत्म हो गई है। यह किसी महिला की सामाजिक छवि को खराब करने वाला अपराध है। दरअसल, महेंद्र पार्क पुलिस थाने में दुष्कर्म को लेकर एफआईआर दर्ज करवाई गई थी। जस्टिस भटनागर का कहना था कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इस कोर्ट में निहित शक्तियों के प्रयोग से आरोपों को खारिज नहीं किया जा सकता है। एनओसी का अर्थ यह है कि पीड़िता अपने द्वारा लगाए गए आरोपों से मुकर गई है। ऐसे में सिर्फ इसे आधार मानते हुए अपराधी को माफ नहीं किया जा सकता। आरोपी ने एफआईआर रद्द करने के लिए याचिका लगाई थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
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