सहरी खाने में है बरकत-शहर क़ाज़ी

कौशाम्बी | शहर काजी हज़रत मुफ़्ती खुशनूद आलम एहसानी ने बताया कि हदीस की सबसे प्रसिद्ध किताब बुखारी शरीफ भाग नम्बर 1 हदीस नम्बर 1923 पृष्ठ संख्या 633 पर है कि पैग़म्बर ए इस्लाम रसूलुल्लाह सलल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया(कहा) की सहरी खाओ की सहरी खाने में बरकत है हदीस की एक और किताब तबरानी शरीफ की हदीस में है कि अल्लाह और उसके फरिश्ते सहरी खाने वाले पर दरूद भेजते हैं । शहर काजी ने बताया कि हदीस की एक और बहुत प्रसिद्ध किताब तिरमीज़ी शरीफ की हदीस में है कि हुज़ूर सलल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अल्लाह ने फ़रमाया की मेरे बंदों में मुझे ज़्यादा प्यारा वो है जो इफ्तार में (वक़्त हो जाने के बाद)जल्दी करता है और कहा इफ्तार में जल्दी करना और सहरी में देर करने वालों को अल्लाह पसन्द करता है ! सहरी खाना और उसमें देर करना सुन्नत है मगर इतनी देर करना मकरूह(मना) है कि सुबह सादिक़ प्रारंभ हो जाने का शक हो जाए। इसी तरह इफ्तार में जल्दी करना सुन्नत है मगर इफ्तार उस वक़्त करें जब सूरज डूब जाने का यकीन हो जाये। शहर काजी ने आगे चर्चा करते हुए बताया कि पैगम्बर ए इस्लाम ने कहा है कि सहरी कुल की कुल बरकत है उसे न छोड़ना ,अगर कुछ न हो तो एक घूंट पानी ही पी लो क्योंकि सहरी खाने वालों पर अल्लाह और उसके फरिश्ते दरूद भेजते हैं । एक सहाबी (मोहम्मद साहब के अनुयायी) कहते हैं कि मैं एक बार हज़रत मोहम्मद साहब के पास आया और मैने देखा कि हुज़ूर सहरी खा रहे हैं , जब मैं हुज़ूर के पास गया तो मुझसे कहने लगे कि ,ए मेरे सहाबी(मानने वाले)सहरी में बरकत है अगर अल्लाह ने तुम्हे दी हो तो इसे न छोड़ना। शहर काजी ने कहा कि इस तरह की बहुत सी हदीसें हैं जिनसे ये पता चलता है कि सहरी खाने में बरकत ही बरकत है इस लिए सहरी ज़रूर खाएं और रमज़ान में ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह पाक की इबादत करें और अपने गुनाहों की माफी मांगे की अल्लाह रमज़ान के सदके करम फरमाएगा।