चित्त और वृत्ति सकारात्मक बनाने का सदैव हो प्रयास: मुरलीधर

चित्रकूट। रामायण मेला प्रेक्षागृह में चल रही रामकथा के छठवें दिन मानस वक्ता संत मुरलीधर जी महाराज ने भरत चरित्र, माता केकई सहित अयोध्यावासियों का चित्रकूट प्रस्थान, निषाद राज व केकई चरित्र पर भावुक प्रकाश डाला। रामायण की सुंदर चैपाइयां सुनकर श्रोता भावविभोर नजर आए। प्रसंग के माध्यम से महाराज ने बताया कि भरत प्रेम की मूर्ति है। दुनिया के सभी भाइयों के लिए प्रेणास्रोत व आदर्श है। महाराज ने कहा कि व्यक्ति अपने जीवन में जाने अनजाने अनेक पाप करता है। इन्ही पापों को भगवान के सामने स्वीकार करने मात्र से पापो का नाश हो जाता है। भगवान को प्राप्त करने के लिए भक्ति मार्ग से श्रेष्ठ कोई मार्ग नहीं हो सकता। व्यक्ति को क्रोध, लोभ, मोह, हिसा, संग्रह आदि का त्याग कर विवेक के साथ श्रेष्ठ कर्म करना चाहिए। संत की वाणी सुनने का अवसर मानव जीवन में मिले तो इसे अमृत तुल्य मान लेना चाहिए। संत की वाणी के एक उपदेश को भी अगर जीवन में आत्मसात कर लिया जाए तो जन्म सफल हो जाता है। चित्त और वृत्ति सकारात्मक बने व्यक्ति को यह प्रयास सदैव करना चाहिए। इस अवसर पर यज्ञवेदी मंहत सत्यदास महाराज, भागवताचार्य सिद्धार्थ पयासी, चंद्रकला रमेश चंद्र मनिहार, विजय महाजन, नीलम महाजन, विष्णु गोयल, चंदा शर्मा, शिव कुमार कंसल, उम्मेद सिंह राजपुरोहित, चंद्र प्रकाश खरे, जगदीश गौतम, पंकज अग्रवाल, सौरभ पयासी सहित साधु संत व श्रोतागण मौजूद रहे।