हिन्दी-उत्थान के लिए अथक प्रयास करने की ज़रूरत- विभूति मिश्र

प्रयागराज | हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के ७३वें राष्ट्रीय अधिवेशन का समापन-समारोह सम्मेलन के राजर्षि टण्डन पण्डपम के सभागार मे १३ मार्च को आयोजित किया गया। द्विदिवसीय आयोजन के अन्तर्गत दूसरे और अन्तिम दिन प्रथम सत्र मे ‘साहित्यपरिषद्’ के अन्तर्गत ‘स्वतन्त्रता-संग्राम मे साहित्य की भूमिका’ पर विषय-विशेषज्ञों ने अपने आलेख का पठन किया था। सभापतित्व कर रहे उत्तरप्रदेश हिन्दी-संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ० सदानन्द गुप्त ने कहा, “स्वातन्त्र्य-चेतना के प्रकटीकरण का काम स्वचेतना करती है। किसी भी देश का साहित्य मनुष्यता से परिचालित होता है।”प्रतिष्ठित कथाकार नीरजा माधव ने स्वातन्त्र्य-आन्दोलन मे स्त्री-साहित्यकारों की भूमिका के साथ अन्याय किये जाने के प्रति चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा,”आज़ादी की लड़ाई मे हमारी स्त्री साहित्यकारों की महती भूमिका थी; किन्तु हमारे इतिहासकारों ने उन्हें विस्मृत कर दिया है।” भाषाविज्ञानी और समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने  कहा,”हिन्दी-साहित्यकारों ने स्वातन्त्र्य समर मे मात्र शब्द-स्तर पर अपना योग नहीं दिया था, बल्कि कर्म के धरातल पर भी अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वहण किया था। उनके विषय मे हिन्दी-साहित्य का इतिहासकार मौन है, जबकि इस पक्ष को भी हिन्दी-साहित्य मे स्थान देना होगा।”रामकृष्ण जायसवाल ने कहा, “जब देश मे ब्रिटिश शासन लागू हो गया था तब उसके विरोध मे सामाजिक, राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना जाग्रत् की गयी थी।”   सुरेखा शर्मा ने आलेख पढ़ा, “तमिल-कवि सुब्रह्मण्य भारती ने राष्ट्र से परिपूर्ण रचनाएँ कर अपनी राष्ट्रीयता की महत्ता रेखांकित की थी।”डॉ० विनम्रसेन ने कहा, ” हिन्दी नवजागरण का काम ब्रिटिश-सत्ता के विरुद्ध था।”   डॉ० सरोज सिंह ने कहा, “मेरठ के बाज़ारों की गणिकाओं ने  अँगरेज़ सिपाहियों को भड़काकर स्वतन्त्रता की लड़ाई मे कूद पड़ने के लिए आन्दोलित किया था।” प्रथम सत्र की समाप्ति के बाद द्वितीय सत्र का आरम्भ हुआ था, जिसका विषय था, ‘राष्ट्रीय शिक्षानीति और राष्ट्रभाषा’। सभापतित्व करते हुए केन्द्रीय हिन्दी शिक्षा मण्डल के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा ‘जोशी’ ने कहा, ” आज लाखों की संख्या मे हिन्दी-माध्यम मे पढ़ रहे विद्यार्थी ‘हिन्दी-माध्यम’ को छोड़कर ‘अँगरेज़ी-माध्यम’ की ओर भाग रहे हैं। यह शोचनीय स्थिति है। आज बिना अँगरेज़ी पढ़े कोई भी व्यक्ति चिकित्सा, अभियान्त्रिकी, प्रबन्धन आदिक की शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकता। इनके अतिरिक्त डॉ० योगेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ० प्रमोद पाण्डेय, डॉ० संगीता सिंह आदिक ने अपने आलेख पढ़े थे।समापन-चरण मे बाहर के और स्थानीय साहित्यकारों को सम्मेलन-सम्मान से आभूषित किया गया था, जिनमे संजीव निगम, रघुवीर सिंह वोकन, सुरेखा शर्मा, प्रद्युम्ननाथ तिवारी ‘करुणेश’, यास्मीन सुल्ताना नक़वी, अनिता गोपेश, रविनन्दन सिंह, यश मालवीय, आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, श्लेष गौतम तथा विवेक सत्यांशु सम्मिलित थे। समापन-आयोजन के मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति शेखर यादव ने कहा, “हिन्दी हमारी मातृभाषा है, जो कहीं न कहीं राष्ट्रभाषा से कुछ पीछे रह गयी है, लेकिन आप सभी के प्रयास से  यह राष्ट्रभाषा हो जायेगी।”    अधिवेशन-सभापति प्रो० नागेश्वर राव ने कहा, “आप समस्त हिन्दीसेवियों की कर्मशीलता से हमे स्फूर्ति मिली है। हमे हिन्दी-अँगरेज़ी के विवाद से दूर रहकर हिन्दी के प्रति प्रेम दिखाना चाहिए।”  इसी अवसर पर चार प्रस्ताव पारित किये गये थे :- १- सम्मेलन-द्वारा संचालित प्रथमा, मध्यमा तथा उत्तमा परीक्षाओं को मान्यता दी जाये। २- हिन्दीभाषी राज्यों मे हिन्दी-प्रयोग की दिशा मे  जो प्रमाद दिखायी दे रहा है, उसके लिए हिन्दी-समितियाँ जगह-जगह गठित की जायें। ३- उर्दू को द्वितीय भाषा का स्थान न देकर, उसे हिन्दी मान लिया  जाये। ४- देश के महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों तथा अन्य शिक्षण-संस्थानो मे कौशल शिक्षण-केन्द्र खोले जायें।  सम्मेलन के प्रधानमन्त्री विभूति मिश्र ने कहा, “हिन्दी-माध्यम के स्कूलों मे अँगरेज़ी-माध्यम के स्कूल बड़ी संख्या मे खोले जा रहे हैं। आज जिस स्तर पर हिन्दी-उत्थान के लिए जितना कार्य करना चाहिए, उतना किया नहीं जा रहा है।” इस अवसर पर डॉ० सदानन्द गुप्त की पुस्तक ‘हिन्दी-साहित्य की सृष्टि और दृष्टि’, रामकृष्ण की पुस्तक ‘बड़े भाग मानुष तन पावा’, ‘ गुलाब चन्द पटेल की ‘वैश्विक दृष्टि में गांधी जी तथा श्यामकृष्ण पाण्डेय की पुस्तक ‘बढ़ते कदम’ का लोकार्पण किया गया।  इस अवसर पर डॉ० पूर्णिमा मालवीय, डॉ० सीमा जैन, अमरनाथ झा, जगदीशनारायण विश्वकर्मा, विजयलक्ष्मी विभा, जनकवि प्रकाश, डॉ० सुशील कुमार पाण्डेय ‘साहित्येन्दु’, डी० के० सिंह आदिक प्रबुद्धवर्ग की उपस्थिति थी।