चित्त विचित्र ना हो इसीलिए हुआ कृष्णावतार – संतदास

चहनियां। मारूफपुर स्थित बाबा कीनाराम मठ रामशाला परिसर में आयोजित सात दिवसीय संगीत मय श्रीमद्भागवत कथा के छठें दिन सोमवार को अयोध्या के संत संतदास जी महाराज ने श्री कृष्ण की बाल लीलाओं की कथा श्रवण कराते हुए श्रोताओं से कहा कि पृथ्वी से पाप की चोरी करने के लिए ही भगवान समय समय पर अवतार लेते है। भगवान कृष्ण नवनीत की चोरी करते थे यहां शुकदेव जी ने नवनीत का अर्थ मक्खन नही बल्कि नयी नयी चीजें बताई है। नये का भाव चित्त से है। जहां भगवान लोगों के चित्त को चुराकर गलत कार्यों को करने से रोकते है इसलिए भगवान को चोर कहना मुर्खता है। उन्होंने कहा कि सूर्य और चन्द्रमा की खुशी के लिए ही नही बल्कि भगवान अवतार बारह बजे ही लेते है क्योंकि सिर्फ बारह लोग ही भगवान के वास्तविक रूप को जानते है। कुल बारह अवगुणों को समाप्त करने के लिए परमात्मा बारह बजे आते है। जिसका चित्त शुद्ध होगा वहीं वसुदेव है जिनके पुत्र के रूप में भगवान आये। मथुरा मानव काया है जबकि सबको आनन्द देने वाला नन्दालय है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने बाला लीलाएं किया। संतदास जी ने कहा अपना पाप अपने ही खाता है ककार ककार को रकार रकार को समाप्त कर दिया। अर्थात कंस का अन्त कृष्ण वहीं रावण का अंत राम ने किया। कथाएं मनुष्य के उद्धार के लिए ही बनायी गयी है। कंस ने केवल सात फाटक ही क्यों लगवाया क्योंकि हम मनुष्य के पास भी सात इन्द्रियां और सात दिन है जिसके सुधार से बैकुण्ठ की प्राप्ति निश्चित है। कथा श्रवण में मुख्य रूप से तिलकधारी शरण दास, सूबेदार मिश्र, राममूरत पाण्डेय, जयशंकर मिश्र, जगदीश पांडेय, सन्तोष पांडेय, दुर्गेश पांडेय,  नागेन्द्र मिश्र, मनोज पांडेय, राधेश्याम यादव, हरिओम दुबे, प्रवीण पाण्डेय, अनिल यादव, रमाशंकर यादव, सुरेश पाण्डेय, विवेक दास, नरेंद्र बाबा, अभय मिश्र सहित तमाम श्रोता गण उपस्थित रहे।