लुटियंस की पुरानी डिजाइन से मिलता जुलता होगा सेंट्रल विस्टा का प्लांटेशन

नई दिल्ली । सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत साल 2022 में भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस तक एक नया संसद भवन तैयार किया जाना है। इसके अलावा इसके तहत एक नए आवासीय परिसर के निर्माण की परिकल्पना की गई है, जिसमें प्रधानमंत्री और उप-राष्ट्रपति के आवास के साथ-साथ कई नए कार्यालय भवन और मंत्रालयों के कार्यालयों के लिए केंद्रीय सचिवालय का निर्माण होना है। इस परियोजना पर काम कर रहे डिजाइनरों और आर्किटेक्ट ने कहा कि नए सेंट्रल विस्टा को डिजाइन करते समय वृक्षारोपण का ध्यान ओरिजनल लुटियंस दिल्ली की तरह रखने की कोशिश की जाएगी। सेंट्रल विस्टा रिडेवलप्मेंट प्रोजेक्ट में डिजाइनरों को सलाह दे रहे पर्यावरणविद् और लेखक प्रदीप कृष्ण ने बताया कि नई वृक्षारोपण योजना को 1912 में राजधानी के लिए ब्रिटिश डिजाइन को दोहराया गया है। बीते सालों में जो गलतियां शहर के बागवानी विभागों ने की हैं उन्हें भी सुधारा जाएगा। कृष्ण ने कहा कि सेंट्रल विस्टा परियोजना के सलाहकार के रूप में, उन्होंने लुटियंस के डिजाइन के मूल पैटर्न को यथासंभव बनाए रखने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि नई डिजाइन केंद्रीय लोक निर्माण विभाग और नई दिल्ली नगर परिषद द्वारा वर्षों से किए गए वृक्षारोपण को भी सुधार सकती है। शुरू में लुटियंस दिल्ली के एवेन्यू में केवल 13 पेड़ की प्रजातियों को चुना गया था बाद में यह संख्या बढ़ाकर 16 कर दी गई। कृष्ण ने बताया कि क्राइटेरिया यह था कि उस विशेष एवेन्यू के लिए चुने गए पेड़ों का शेप और साइज को फ्रेम करने के लिए सही होना चाहिए, जिसमें तीन बातों का ध्यान रखा गया- उनका साइज सही होना चाहिए, उन्हें सदाबहार होना चाहिए और वे सामान्य नहीं होने चाहिए. यही कारण था कि मुगलों द्वारा पसंद की जाने वाली प्रजातियां, जैसे कि आम या शीशम को एवेन्यू योजना में जगह नहीं मिली थी। लुटियंस की परियोजना में लगभग 450 पेड़ थे, जिनमें से कम से कम 385 राय-जामुन के पेड़ थे। हालांकि आज यहां कम से कम 3200 बड़े पेड़ हैं। परियोजना डिजाइन के प्रभारी फर्म एचसीपी डिजाइन प्लानिंग एंड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड (एचसीपी) के प्रवक्ता ने कहा कि लगभग 1080 राय-जामुन के पेड़ हैं। इतिहासकारों ने बताया कि लुटियंस ने शुरुआत में दिल्ली के इस हिस्से को डिजाइन किया था, जिसमें सभी सड़कों को राइट एंगल पर क्रॉसिंग किया गया था। हालांकि, दिल्ली के धूल भरे मौसम को ध्यान में रखते हुए बाद में इसमें बदलाव किया गया। इस प्रकार, पेड़ों, बाड़ों, यहां तक कि गोल चक्करों को मौसमी धूल भरी आंधियों से बचने के लिए सावधानीपूर्वक डिजाइन किया गया था।