वर्ष २०२२-२३ के परिव्यय (बजट) प्रस्तुत करने से पूर्व ऐसा लग रहा था कि ‘न्यू इण्डिया की मोदी-सरकार’ जनसामान्य की कठिनाइयों को समझते हुए, लोकहित में परिव्यय प्रस्तुत करेगी, जबकि इसके विपरीत दिखा। हमारे पाठकों को स्मरण होना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी इन दिनो अपने चुनाव-प्रचार मे लगातार ‘लाल’ रंग को ‘रेड एलर्ट’ और ‘खतरे की घण्टी’ बताते आ रहे हैं, वह बिलकुल सही है; क्योंकि ‘न्यू इण्डिया की मोदी-सरकार’ की वित्तमन्त्री निर्मला सीतारमण ने १ फ़रवरी, २०२२ ई० को वित्तवर्ष २०२२-२३ का परिव्यय (बजट) प्रस्तुत करने के लिए ‘लाल’ रंग के कपड़े मे लिपटे टैबलेट का सहारा लिया था, जो वास्तव मे, देशवासियों के लिए ‘रेड एलर्ट’ और ‘ख़तरे की घण्टी’ सिद्ध हो चुका है। परिव्यय मे शुरू से ही उद्योगपतियों और व्यवसायियों पर मेहरबान इस सरकार का बेईमान नज़रीय:/नज़रीया (‘नज़रिया’ अशुद्ध है।) इस परिव्यय में भी झलक रहा है। ज़मीन से जुड़ी जनता के लिए ऐसा कुछ भी है कि परिव्यय को लोकहितकारक कहा जाये। यही कारण है कि इधर परिव्यय घोषित किया गया था, उधर शेअर बाज़ार मे उथल-पुथल मचने लगा था। निफ़्टी ऊपरी स्तर से १९० पॉइण्ट फिसल चुका है, जबकि सेंसेक्स उतरता-चढ़ता रहा। आपको स्मरण होना चाहिए कि देश मे कुछ ही माह-पूर्व क्रिप्टो करेंसी-प्रचलन की बात की गयी थी, जिसकी तैयारी भारतीय रिज़र्व बैंक ने कर ली है। अब उसका दुष्प्रभाव इस परिव्यय मे दिख रहा है। इस डिज़टल करेंसी को आगामी वित्तवर्ष से लागू कर दिया जायेगा। इस करेंसी पर ३०℅ का कर लगाना उचित नहीं है। इतना ही नहीं, वर्चुअल करेंसी के स्थानान्तरण पर १% टी० डी० एस० भी लिया जायेगा। यदि उस मुद्रा को किसी को उपहार के रूप मे दिया जाता है तो उस पर लगाया जानेवाला कर वह व्यक्ति देगा, जिसको वह मुद्रा उपहार के रूप मे दिया जायेगा। पहली बार डिज़िटल करेंसी लाने की व्यवस्था इस परिव्यय मे है; परन्तु उसका प्रारूप क्या होगा, अभी अज्ञात है। यहाँ यह भी आशंका दिख रही है कि कहीं डिज़िटल करेंसी लाने के पीछे देश की मूल मुद्रा ‘रुपया’ को प्रचलन से बाहर करना तो नहीं है। हम इससे बिलकुल इन्कार नहीं कर सकते; क्योंकि देश का वह ‘काला आर्थिक-राजनैतिक इतिहास गवाह है कि देशवासियों को बिना विश्वास मे लिये निरंकुश नरेन्द्र मोदी ने ‘नोटबन्दी’ की घोषणा कर दी थी; क्योंकि “मोदी है तो मुमकिन है”।आसन्न चुनावों को देखते हुए, आयकर के स्लैब मे बदलाव की पूरी सम्भावना व्यक्त की जा रही थी, जो कि सही साबित नहीं हुई। मध्यम वर्ग की आशा पर कथित सरकार ने ‘तुषारपात’ (‘तुषारापात’ अशुद्ध है।) किया है। विद्युत् से सम्बन्धित सामानो पर लगनेवाले कर मे छूट देने की बात की गयी है। गहनों, आभूषणादिक पर सीमाशुल्क घटाकर ५% कर दिया गया है, जबकि कृत्रिम आभूषणो पर लिया जानेवाला सीमा-शुल्क ४०० रुपये प्रति किलोग्राम ही रखा गया है; कोई छूट नहीं दी गयी है। चमड़े के सामान, जूते, चप्पल, वस्त्र, मोबाइल फ़ोन चार्जर, मोबाइल फ़ोन कैमरा लेंस, ट्रांसफार्मर आदिक के मूल्य घटाना ठीक उसी प्रकार से है जिस प्रकार से मुरदे का बाल बनाकर उसके भार को हलका करना कहा जाये। दूसरी ओर, हेड फ़ोन और ईअर फ़ोन को महँगे किये जायेंगे।’न्यू इण्डिया की मोदी-सरकार’ कर मे बढ़ोतरी (‘बढ़ोत्तरी’ अशुद्ध है।) न करने को अपने परिव्यय को ऐतिहासिक बताकर अपने गैंडे की खालवाली पीठ को ख़ुद ठोंक और ठोंकवा रही है। पेट्रोल, डीज़ल, रसोईगैस, खाद्यतेल पर जो १०० प्रतिशत से भी अधिक की बढ़ोतरी इस कथित क्रूर सरकार ने की है, उसके जी० एस० टी०-दर मे कमी लाने से पूरी तरह से अपनी आँखें चुरा ली हैं। अब तो १ अक्तूबर, २०२२ ई० से देश मे बिना इथेनॉल मिश्रणवाले ईंधन पर २ रुपये प्रति लीटर का उत्पाद शुल्क लिया जायेगा। इस प्रकार १ अक्तूबर से देश मे बिना ब्लेडिंगवाला पेट्रोल महँगा हो जायेगा। ऐसा इसलिए कि यह सरकार जान चुकी है कि ईंधन मे अतिरिक्त उत्पाद शुल्क लागूकर सरकार मोटी धनराशि कमाना चाहती है। अब सवाल यह है कि तेल-कम्पनियाँ बिना ब्लेडिंगवाला पेट्रोल-डीज़ल बेचेंगी अथवा विकल्प की ओर देखेंगी। कम्पनियाँ स्वयं उत्पाद शुल्क वहन करेंगी या फिर जनसामान्य के कन्धों पर वह अतिरिक्त भार डाल देंगी। निर्धन और मध्यम वर्गों का वर्षा से बचने का जो एक सस्ता और आसान सहारा ‘छाता’ रहा है, उसे भी मोदी की क्रूर दृष्टि बरदाश्त नहीं कर पा रही है। यही कारण है कि छाता-छतरियों पर लगनेवाले सीमा-शुल्क इस परिव्यय मे २०% कर दिया है। इससे चीन और अन्य देशों से आयात की जा रही छतरियों के मूल्य मे वृद्धि कर दी जायेगी; वहीं छतरियाँ बनाने के लिए कल-पुर्ज़ों पर मिलनेवाली कर-छूट समाप्त कर दी गयी है। वास्तव मे, कथित सरकार अपने-द्वारा ही गढ़े हुए ‘अर्थहीन’ शब्द मे ‘दिव्यांग’ दिख रही है, तभी तो जनसामान्य को पिछले सात सालों से जिस तरह से महँगाई की चक्की मे इस निर्मम सरकार ने पीस कर रख दिया है, उससे इसकी निरंकुशता साफ़ नज़र आ रही है। हमारे स्वास्थ्य के लिए यह सरकार इस परिव्यय मे कौन-सी सर्वसुलभ योजना दिखा रही है, दूर-दूर तक इसका अता-पता नहीं है। करोना-विपदा मे हमारे लाखों देशवासी मारे जा चुके हैं और आज भी प्रत्येक दिन हज़ारों लोग मारे जा रहे हैं, उसके बाद भी इस परिव्यय मे समुचित उपचार के लिए कोई सुविधा-साधन की व्यवस्था नहीं की गयी है। हमारे देश के बेरोज़गारों के लिए इस परिव्यय मे कोई सार्थक योजना नहीं है। देश मे आज लाखों की संख्या मे सेवाक्षेत्रों मे स्थान रिक्त हैं। नौकरी के लिए आन्दोलन कर रहे हमारे विद्यार्थी आये-दिन इस आततायी सरकार की पुलिस की लाठियाँ खा रहे हैं। इस पर परिव्यय मे व्यवस्था क्यों नहीं की गयी है? इस पूरे परिव्यय मे १६ लाख रोज़गार देने की बात कही गयी है; परन्तु वह रोज़गार ‘पकौड़ा तलकर बेचनेवाला’ है अथवा ‘संविदा’ का ढकोसला है अथवा दो करोड़ प्रतिवर्ष रोज़गार देनेवाला ज़ुम्ला है। परिव्यय मे ‘मनरेगा’ में कटौती की गयी है। आश्चर्य होता है! इसे वित्तमन्त्री आनेवाले पच्चीस वर्ष के लिए दृष्टिकोण बता रही हैं। इसका सीधा मतलब है कि नरेन्द्र मोदी ने अमर रहने के लिए कौए का जीभ खा लिया है, ताकि पच्चीस वर्षों तक निष्कण्टक ‘न्यू इण्डिया’ की कुर्सी तोड़ते हुए, ‘भारत’ देश पर भार बने रहें। जिस ‘न्यू इण्डिया की मोदी-सरकार’ ने गंगानदी-जल को स्वच्छ करने के लिए ‘नमामि गंगे’ परियोजना आरम्भ की थी और अन्तत:, विफल रही, वही सरकार अब अपने परिव्यय की आड़ मे गंगा नदी के किनारे जैविक खेती शुरू कराने की बात कह रही है। इतना ही नहीं, निर्मला सीतारमण ने अगले वित्तवर्ष मे १,००० लाख मीट्रिक टन धान क्रय करने के लिए कहा है, जिससे कि १ करोड़ से अधिक किसानो को लाभ हो जाये, जबकि सच्चाई यह है कि इस समय उत्तरप्रदेश मे धानक्रय केन्द्र मे इतनी धाँधली और अनियमितता दिख रही है कि धानक्रय के लिए कई किसानो का अभी तक पंजीकरण नहीं किया गया है। इतना ही नहीं, जिनका पंजीकरण हो चुका है, उनमे से बड़ी संख्या मे किसान ऐसे हैं, जो अपने धानक्रय कराने के लिए परेशान हैं। जहाँ कहीं ईमानदार नायब तहसीलदार और एस० डी० एम० आदिक अधिकारी कर्त्तव्यनिष्ठ हैं, वहाँ तो किसानो के साथ देर-सवेर न्याय हो जा रहा है, शेष ‘जय श्री राम’ भरोसे हैं। यद्यपि इस बार परिव्यय मे १ लाख २३ हज़ार करोड़ रुपये कृषि-विकास के लिए निर्धारित है तथापि ज़मीन से जुड़ी एक भी योजना दिख नहीं रही है। ‘किसान सम्मान निधि’ पर सरकार मौन बनी हुई है। किसान को बीज, खाद, सिंचाई, खाद्यान्न-क्रय के लिए परिव्यय मे सुस्पष्ट न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था क्यों नहीं की गयी है? कॉरपोरेट-क्षेत्र के कर मे कमी करके इस विषमदर्शी सरकार ने सिद्ध कर दिया है कि वह उच्च वर्ग की प्रभुता के सम्मुख नतमस्तक है। यही कारण है कि इस परिव्यय मे कॉरपोरेट-कर मे कमी कर दी गयी है, जो कर पहले १८℅ लिया जाता था, अब उसे १५ ℅ कर दिया गया है। इतना ही नहीं, कॉरपोरेटिव अधिभार भी कम कर दिया गया है, जो पहले १२% था, अब ७% कर दिया गया है। यह सरकार केवल दो प्रकार के चश्मे रखती है :– पहला, उच्चवर्ग के लिए और दूसरा, निम्न वर्ग के लिए। निम्न वर्ग मे से अधिकतर अच्छी स्थिति मे है; किन्तु केवल सत्ता की राजनीति करने के लिए उस पर कुछ अधिक ही मेहरबान दिखती आ रही है और मध्यम वर्ग के लिए ‘हिन्दू-मुसलमान’ का झुनझुना थमाती आ रही है और वह नादान मध्यम वर्ग कथित घृणित धर्मों का अफ़ीम चाटते हुए, ‘मोदी-मोदी’ करता आ रहा है; अफ़ीमचियों को और क्या चाहिए। इस परिव्यय मे भी वित्तमन्त्री निर्मला सीतारमण ने ‘वरिष्ठ नागरिकों’ की उपेक्षा की है। पिछले वर्ष के परिव्यय को प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा था– सीनियर सिटिजन को हम आयकर से मुक्त कर रहे हैं; परन्तु उसकी अवस्था ७५ वर्ष से ऊपर निर्धारित की है। अब प्रश्न है, ७५ वर्ष की अवस्थावाले शासकीय सेवकों की संख्या कितनी है? उन सेवकों मे से कर-योग्य पेंशन-प्राप्त करनेवाले पचहत्तर वर्षीय लोग कितने हैं? यह केवल देश को बेवकूफ़ बनाया गया है। ‘प्रॉविडेण्ट फण्ड’ से प्राप्त धनराशि के ब्याज पर सरकार की क्रूर दृष्टि पड़ चुकी है। अभी तक सरकार २.५ लाख रुपये के ब्याज पर ‘कर’ लेती आ रही है। इस परिव्यय मे भी सब कुछ पहले-जैसा ही है। सीतारमण के आँखों का पानी मर चुका है। हम तो समझते थे कि वरिष्ठ नागरिकों की अवस्था का निर्धारण ६० वर्ष से किया जायेगा, ताकि वास्तव मे, जहाँ से ‘वरिष्ठ नागरिक’ का अवस्था-वर्ग’ आरम्भ होता है, वहीं से उन्हें आयकर से मुक्ति मिलेगी। परिव्यय मे वर्ष २०२२-२३ की अवधि मे राष्ट्रीय राजमार्गों की लम्बाई मे २५ हज़ार किलोमीटर तक का विस्तार किया जायेगा; लेकिन यह नहीं बताया गया कि उन मार्गों पर चलने के लिए जनसामान्य से कितना टोल टैक्स वसूला जायेगा। ठीक उसी तरह से तीन वर्षों मे ४०० ‘वन्दे भारत’ रेलगाड़ियाँ चलाने की योजना बतायी गयी है; परन्तु यात्रियों की ज़ेबें ढीली करने के लिए सरकार कौन-सी नीति अपनायेगी, यहाँ भी फ़िलहाल वह मौन है। उल्लेखनीय है कि ‘न्यू इण्डिया की मोदी-सरकार’ का यह दसवाँ परिव्यय है और निर्मला सीतारमण का चौथा; परन्तु आर्थिक स्तर पर इस सरकार की अपरिपक्वता लगातार दिखती आ रही है। सत्य तो यह है कि उस अपरिपक्वता मे कथित सरकार केवल अपने राजनैतिक दल ‘भारतीय जनता पार्टी’ का हित देखती आ रही है। इसका जीता-जागता वर्तमान परिव्यय है, जिसमे भारतीय जनता पार्टी की योगी आदित्यनाथ की सरकार को केन्द्रीय कर से कुल १,४६,४९८ करोड़ रुपये दिये जायेंगे। कथित सरकार को वित्त आयोग से १५ हज़ार ३ करोड़ रुपये दिये जायेंगे। इतना ही नहीं, उसे ‘जीवन मिशन’ के लिए १३ हज़ार करोड़ रुपये, रोड हाइवे के लिए १६ हज़ार ३ सौ करोड़ रुपये, जलसंसाधन के लिए ९५७ करोड़ रुपये तथा समग्र शिक्षा के लिए ६,२४१ करोड़ रुपये दिये जायेंगे। इस तरह से उत्तरप्रदेश के चुनाव को मोदी की नाक मानकर लड़ा जा रहा है, उससे यह धनराशि-वितरण उत्तरप्रदेश के मतदाताओं को फुसलाने के लिए दिख रहा है। अन्त मे, प्रश्न है, इस परिव्यय मे जो सब्ज़बाग़ दिखाया गया है, उसे व्यावहारिक बनाने के लिए सरकार धनराशि कहाँ से लायेगी? ज़ाहिर है, बहुविध उपायों के द्वारा आम जनता का ख़ून चूसा जायेगा, जैसा कि पिछले सात वर्षों से चूसा जाता रहा है।
लेखक उन्मुक्त चिन्तक-विश्लेषक हैं।